इस आभासी दुनिया (Virtual World) में इन दिनों डाटा गोपनीयता (Data Privacy) एक बढ़ती चिंता क्यों है? 21 वीं सदी को अगर डिजिटल सदी कहा जाए तो शायद कोई गलत नहीं होगा। पिछले 2 दशकों में इंटरनेट (INTERNET) पर हमारी निर्भरता काफी बढ़ गई है। हर छोटे से छोटे काम के लिए अब हम इंटरनेट (INTERNET) की शरण लेने लगे है। यानि इंटरनेट (INTERNET) हमारी एक तरह नई दुनिया है। जब दुनिया नई है तो इसकी चुनौतियां भी नई हैं। पहले हम अपनी चीजें घर में रखते थे तो चोर उनकी चोरी करने हमारे घरों में घुस जाते थे। अब हमारी तिजोरी बदल गई है तो चोरों ने भी अपना रास्ता नई तिजोरी तक बना लिया है। आज हम इसी नई दुनिया/ तिजोरी की बातें करेंगे।
आपने कभी सोचा है कि क्या इंटरनेट (INTERNET) सेफ है? हमारा फोन नंबर, फोटो, पैन कार्ड और आधार कार्ड जैसी निजी जानकारी किसी के पास कैसे जाती हैं? क्या आप जानते है कि इन सब निजी जानकारियों से कोई आपका अकाउंट खाली कर सकता है?
ट्रिब्यून न्यूज सर्विस के अनुसार पिछले दो वर्षो में 5% से 10% साइबर धोखाधड़ी में साइबर अपराधियों द्वारा नेपाली मूल के लोगों के आधार कार्ड का दुरुपयोग किया गया है। साइबर अपराध के कई मामलों की जांच से पता चला है कि बदमाशों ने नेपाल, बिहार और झारखंड के मजदूरों के आधार कार्ड का इस्तेमाल करके सिम खरीदे और अपने KYC (Known Your Customer) विवरण जमा करके ऑनलाइन बैंक खाते खुलवाए। अपराधियों ने इन खातों का इस्तेमाल लोगो को ठगने के लिए किया था। (साइबर अपराधी पहले पीड़ितों के पास पैसे जमा करवाने के बहाने उनकी बैंक डिटेल्स मांगते हैं और फिर लिंक भेज देते हैं जैसे ही पीड़ित लिंक पर क्लिक करता है अपराधी उनके फोन तक पहुंच जाते है और उनके खाते से पैसे ट्रांसफर हो जाते है)
ट्रिब्यून न्यूज सर्विस में बताया गया है कि पिछले दो वर्षो (2021 और 2022) में 12,665 साइबर शिकायतें प्राप्त हुई और 320 प्राथमिकी दर्ज की गई।
डाटा (DATA) प्राइवेसी क्या है
हमारे फोन, लैपटॉप, स्मार्ट वॉच और सारे डिवाइसेज 24/7 हमारे साथ रहते हैं। इन सब डिवाइसेज के माध्यम से हम हमारी काफी सेंसिटिव इंफॉर्मेशन तक शेयर करते हैं। हम लोग रोजाना कितने ही वेबसाइट्स पर अपने फोन नंबर से लेकर, पैन नंबर, क्रेडिट कार्ड डिटेल्स आदि शेयर करते रहते हैं। इसके अलावा बहित सारी सामान्य सेवाएं लेने के लिए भी आज-कल हमें अपनी निजी व गोपनीय जानकारी काफी पोर्टल्स पर साझा करनी पड़ती हैं। यही है हमारी सेंसिटिव इंफॉर्मेशन। अभी इस पूरे डाटा (DATA) को हैन्डल करने के लिए कोई प्रॉपर रूले रेग्यलैशन्ज़ नहीं बने हैं। इसीलिए लगातार हमारी प्राइवेसी (PRIVACY) पर अटैक होता रहता है।
हालांकि भारत समेत कई देशों में आईटी संबंधित कुछ कानून बने हैं। भारत में व्यक्ति डाटा (DATA) या नागरिकों की जानकारी का उपयोग सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT ACT) 2000 की धारा 43ए के तहत, सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2011 द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
2012 मे एक याचिका दायर की गई थी जिसमे आधार की संवैधानिक वैधता चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने निजता के अधिकार के उलंघन का आरोप लगाया था। अगस्त, 2017 मे सुप्रीम कोर्ट के नौ न्यायधीशों ने निजता को भारतीय व्यक्तियों का मौलिक अधिकार घोषित किया। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि निजता का अधिकार संविधान द्वारा अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के एक आंतरिक हिस्से के रूप में सुरक्षित है। न्यायालय ने यह भी देखा कि सूचनात्मक गोपनीयता या व्यक्तिगत डेटा और तथ्यों की गोपनीयता निजता के अधिकार का एक अनिवार्य पहलू हैं।
डाटा प्रोटेक्शन (DATA PROTECTION) जरूरी क्यों हैं?
डाटा प्रोटेक्शन (DATA PROTECTION) इंटरनेट (INTERNET) पर शेयर किए गए हमारे फोटो तक सीमित नहीं होती हैं। हमारी तमाम सेंसिटिव इनफार्मेशन व डाटा (DATA) इंटरनेट (INTERNET) पर उपलब्ध है, जिसके दुरुपयोग की संभावनाएं प्रबल हैं। एक आँकड़े के मुताबिक आजकल हर 100 में 18 व्यक्तियों के साथ साइबर क्राइम होता है।
अब जरूरत है डाटा प्रोटेक्शन (DATA PROTECTION) के लिए ठोस कदम उठाने की क्योंकि जब तक कोई ठोस कद नही उठाया जाएगा ये कंपनियां हमारे डाटा (DATA) को सीरियसली नही लेंगी। इसलिए डाटा (DATA) प्रोटेक्शन के लिए पहला कदम होना चाहिए कि इसपर सही कानून बनाए जाएं। उन्हें अच्छे से लागू भी किया जाए।
उदाहरण के लिए आजकल हम हमारा मेडिकल डाटा (DATA) स्मार्ट वॉच के साथ शेयर करते हैं सस्ती है इसलिए उठा कर किसी भी कंपनी की वॉच पहन लेते हैं। लेकिन हमें ये नहीं पता कि ये डाटा (DATA) इन कंपनियों द्वारा किसे-किसे बेचा जाता है? और वो इसका क्या-क्या इस्तेमाल करती हैं?
भारत में सही कानून ना होने की वजह से इंटरनेट (INTERNET) पर कोई कंपनी खोलना बहुत आसन है और डाटा (DATA) किसे और कैसे बेचना है सब उनके हाथ में है। इसलिए जब तक अच्छे कानून नही बनते हमे हमारे (DATA) को लेकर सावधान रहना चाहिए। कोई भी जानकारी इंटरनेट (INTERNET) पर शेयर करने से पहले उक्त कंपनी की डाटा (DATA) प्राइवेसी संबंधी नीति को जरूर पढ़ें। आँख बंद करके अपनी कोई भी निजी जानकारी अविश्वनीय वेबसाईट आदि पर शेयर ना करें।
सरकार जब कानून बनाए तब तक आप कुछ काम लगातार करते रहिए। पहला असुरक्षित वेबसाईट विज़िट ना करें, गैर जरूरी फोन ऐप अपने फोन में इंस्टॉल ना करें, जो इंस्टॉल कर राखी हैं उन्हे रिव्यू करें। तो अभी अपने स्मार्ट फ़ोन की सेटिंग मे जाइए और अपनी फ़ोन की सारी ऐप्स को दी गई परमिशन चेक कीजिए और किसी भी ऐप को चलाने के लिए सिर्फ बेहद जरूरी पर्मिशन ही दें।
लेकिन ये सब करने के बाद भी आपके साथ कोई साइबर क्राइम (CYBER CRIME) हो सकता है। अगर कभी ऐसा हो तो तुरंत साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 पर कॉल करके अपनी शिकायत दर्ज कराएं। इस आभासी (VIRTUAL WORLD) दुनिया में सावधान रहें। याद रखिए बचाव में ही बचाव है।