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क्या है दुनिया भर में तहलका मचाने वाली अंतरिक्ष की इन तस्वीरों का राज?

एक तस्वीर जिसमें काले बैकग्राउंड पर हजारों चमकीले बिंदु दिख रहे हैं। इनमे से कुछ बड़े हैं पर ज्यादातर काफी छोटे हैं। साधारण सी दिखने वाली अंतरिक्ष की इस तस्वीर ने दुनिया भर में तहलका मचा दिया है। आस्तिक इस तस्वीर में ईश्वर खोज रहे हैं और नास्तिक इसे ईश्वर के न होने का सबसे बड़ा सबूत बता रहे हैं। ऐसा क्या है इस तस्वीर में जिसने इंसान को अपने अस्तित्व के प्रश्न पर दोबारा लाकर खड़ा कर दिया है। आइए जानते हैं, जेम्स वेब टेलिस्कोप (James Webb Space Telescope) की उन तस्वीरों के बारे में जिनको देख कर कुछ लोग खुश हैं और ज्यादातर लोग कन्फ्यूज्ड!

“यूँ जो तकता है आसमान को तू, कोई रहता है आसमान में क्या?”- जॉन एलिया

पन्द्रहवीं सदी के इटली में एक आदमी हुआ जिसे शार्ट में गैलिलियो गैलिली (इनके बारे में आप यहां पढ़ सकते हैं) के नाम से जानते हैं, शार्ट में इसलिये क्योंकि उनका असल नाम (Galileo di Vincenzo Bonaiuti de’ Galilei) काफी लंबा है। चलिए छोड़िए नाम में क्या रखा है, काम की बात करते हैं।

गैलिलियो को लेंस और ऑप्टिकल उपकरणों पर काम करने में बड़ा मजा आता था। उन्होंने अपनी इसी कुशलता को इस्तेमाल करते हुए एक दूरबीन बनाई। गैलीलियो, हालांकि दूरबीन के पहले आविष्कारक नहीं थे, लेकिन उन्होंने इसकी ताकत बहुत बढ़ा दी थी। 

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साल 1609 में उनकी इस बेहतर दूरबीन ने उनको चीजों को 8 से 9 गुना बड़ा कर देखने की क्षमता दी। इस खोज के बाद यह देखना संभव हो गया कि चांद की सतह पर पहाड़ और क्रेटर हैं, और बृहस्पति के धरती की तरह ही उपग्रह भी हैं।

गैलिलियो से पहले तक ज्यादातर दुनिया यही मानती थी कि पृथ्वी ही हमारे सोलर सिस्टम का केन्द्र है। पर गैलिलियो ने अपनी टेलिस्कोप से देखा कि शुक्र ग्रह भी चांद की तरह अपना आकार बदलता है।

ये तभी संभव था जब शुक्र पृथ्वी के बजाय सूर्य के चारों ओर घूम रहा हो।  इसने इस धारणा को और कमजोर कर दिया कि आकाश में सब कुछ पृथ्वी के चारों ओर घूमता है। बाकी सब तो इतिहास हो गया है।

टेलिस्कोप होता क्या है? काम कैसे करता है?

इसे साधारण तरीके से यदि हम समझना चाहें तो शुरुआती टेलिस्कोप लेंस बाहर की तरफ उभार लिए  (कॉन्वेक्स) लेंस के जरिए दूर से आ रही रौशनी को इकट्ठा करती है, ये रौशनी एक जगह पर फोकस होती है जिसे हम eye piece में मौजूद लेंस के जरिए देखते हैं।

शुरुआती टेलिस्कोप में लेंस का इस्तेमाल होता था पर आधुनिक टेलिस्कोप लेंस की जगह अंदर की तरफ घुमावदार (कॉन्केव) मिरर का इस्तेमाल करती हैं। टेलिस्कोप में लगे इन मिरर या लेंस को “ऑप्टिक्स” कहा जाता है। एक टेलिस्कोप बहुत दूर की चीज़ों को भी देख सकती है, बशर्ते उसमें लगे ऑप्टिक्स उस क्षमता के हों।

“स्पेस टेलिस्कोप” का विचार कैसे आया?

टेलिस्कोप अगर धरती पर मौजूद है, तो उसके जरिये सुदूर अंतरिक्ष में देखना कठिन हो जाता है। कारण है धरती का वायुमंडल। जब तक रौशनी वायुमंडल के जरिए टेलिस्कोप तक पहुंचती है, तब तक वो अपनी बहुत सी ऊर्जा को खो देती है। इस समस्या का समाधान हैं “स्पेस टेलिस्कोप”।

जब वायुमंडल से ही समस्या है, तो क्यों न टेलिस्कोप को वायुमंडल के बाहर लगा दिया जाए? तो टेलिस्कोप को किया गया पैक, उसे एक रॉकेट के पेट मे फिट किया गया और अंतरिक्ष मे लांच कर दिया गया, एक पहले से तय ऑर्बिट (कक्षा) में पहुंच जाने के बाद टेलिस्कोप ने अपना काम शुरू कर दिया। अब जबकि वायुमंडल से कोई समस्या नहीं है, तब अंतरिक्ष की अनंत गहराइयों में और भीतर झांका जा सकता है।

हबल का बल

अमरीका की अंतरिक्ष एजेंसी है नासा। तो इसने 1990 में एक स्पेस टेलिस्कोप लांच की, जिसका नाम था हबल स्पेस टेलिस्कोप। इसके जरिये ली गई तस्वीरों ने हमें अपने ब्रह्मांड को देखने और समझने का एक बेहतर नजरिया दिया।

हबल के जरिये बहुत सी खोजें की गईं। इसने ब्रह्मांड की उम्र पता लगाने में मदद की जिसे अब 13.8 अरब साल माना जाता है, जो कि पृथ्वी की उम्र का लगभग तीन गुना है। हबल के जरिए  प्लूटो, निक्स और हाइड्रा के दो चंद्रमाओं की खोज की गई। ब्रह्मांड के फैलने की गति का अनुमान लगाया।

हबल के जरिए ही  पता चला कि लगभग हर बड़ी आकाशगंगा के केंद्र में एक ब्लैक होल है। और इसने ही ब्रह्मांड में मौजूद डार्क मैटर का 3-डी मैप भी बनाया।

जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप का कमाल

जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) एक स्पेस टेलीस्कोप है जिसे मुख्य रूप से इन्फ्रारेड रौशनी का इस्तेमाल करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। हबल स्पेस टेलिस्कोप विजिबल रौशनी का इस्तेमाल करती थी। जबकि James Webb Space Telescope इंफ्रारेड रौशनी का।

James Webb Space Telescope अंतरिक्ष में मौजूद सबसे बड़ा स्पेस टेलिस्कोप है। इंफ्रारेड रौशनी का इस्तेमाल करने के कारण इसका रिजोल्यूशन और सेंसिटिविटी हबल टेलिस्कोप से बेहतर है।

James Webb Space Telescope को 25 दिसंबर 2021 को फ्रेंच गुयाना के कौरौ से एरियन 5 रॉकेट पर लॉन्च किया गया था। इसके मुख्य लक्ष्य हैं-

12 जुलाई 2022 को James Webb Space Telescope के जरिये ली गई तस्वीरों और डाटा को जारी किया गया।

टेलिस्कोप या टाइम मशीन?

ऐसा कहा जाता है, कि टेलिस्कोप एक टाइम मशीन है और खगोल विज्ञान इतिहास है। टेलिस्कोप के जरिए हम सुदूर अंतरिक्ष से आने वाली रौशनी को देखते हैं।

रौशनी को एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने में समय लगता है। हम चीज़ों और घटनाओं को वैसे नहीं देखते हैं जैसे कि वे अभी हैं, बल्कि वैसा जैसे वे उस समय थे, जब ये रौशनी वहां  से निकली थी।

इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए हमें प्रकाश वर्ष यानि Light Year का कॉन्सेप्ट समझना होगा। इसमें Year देखकर हमें एक बार को लग सकता है, कि ये समय को नापने की इकाई है, लेकिन दरअसल ये अंतरिक्ष में दूरी को नापने की इकाई है।

एक प्रकाश वर्ष का मतलब है वो दूरी जो प्रकाश की गति (3×10^8 मीटर प्रति सेकंड) पर एक वर्ष तक चलने पर तय की जाए। इसके गुणा भाग में जाये बगैर यदि समझें, तो अगर कोई वस्तु हमसे 1 प्रकाश वर्ष दूर है तो वो हमसे 9.7 ट्रिलियन किलोमीटर दूर है (ट्रिलियन में कितने जीरो होते हैं उम्मीद है गूगल न करना पड़े)।

खैर, आते हैं टाइम मशीन की बात पर। इसे एक साधारण से उदाहरण से समझते हैं। सूरज की रौशनी को धरती तक आने में करीब 8 मिनट का समय लगता है। इसका मतलब यह है कि हम जिस सूरज को अभी देख रहे हैं, वो 8 मिनट पहले का सूरज है।

अजीब लग रहा है न? चलिए एक और उदाहरण लेते हैं। यदि कोई ग्रह धरती से 5 प्रकाश वर्ष दूर है, और हम एक टेलिस्कोप के जरिए देखते हैं कि एक उल्का पिंड उस ग्रह से टकराया है।

अब सवाल ये उठता है, कि क्या ये घटना हम वर्तमान में देख रहे हैं? जवाब है – नहीं। बल्कि हम उस घटना को देख रहे हैं, जो आज से 5 साल पहले घट चुकी है। वो हमें दिखाई अभी दे रही है क्योंकि उस ग्रह से रौशनी को हम तक आने में 5 वर्ष लगे हैं। ठीक उसी तरह अगर 5 प्रकाश वर्ष दूर मौजूद किसी ग्रह से धरती को देखा जाए, तो हमें 5 वर्ष पुरानी धरती दिखाई देगी।

चलिए स्केल को थोड़ा और बड़ा करते हैं। जब हम James Webb Space Telescope के जरिए अंतरिक्ष को निहारते हैं तो हम उस रौशनी को देख रहे होते हैं, जो आज से 13 बिलियन साल पहले निकली थी। इस तरीके से हम अपने ब्रह्मांड के शुरुआती पलों को देख रहे होते हैं। ये सब कर पाना बिना टेलिस्कोप की खोज के असंभव था।

मानव के पास आ चुकी ये असीमित क्षमताएं जादुई सी लगती हैं, है ना। इनके जरिए ही हम अपने अस्तित्व के सवालों का बेहतर तरीके से जवाब दे सकते हैं। इस ब्रह्मांड में हमारे अलावा कोई और मौजूद है या नही, ये वो अगला बड़ा सवाल है, जिसका उत्तर विज्ञान हमें देने वाला है।

यदि इस सवाल का उत्तर हां है, तो हमारे धर्म, संस्कृति और समाज में बहुत बड़े बदलाव होने वाले हैं। यदि हमारे जीवन में इस सवाल का जवाब मिल गया, तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है? खैर, जो भी हो बस इतना तय है, कि इस सवाल का जवाब भी कोई टेलिस्कोप ही देगा।

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