कोरोना महामारी के समय हम में से कई लोगों का किसी न किसी रूप में मेडिकल साइंस के शब्दों और प्रक्रियाओं से सामना हुआ। इस दौरान बहुत से शब्द हमारे सामने आए जैसे RT-PCR, CT value, HRCT-Scan, SPO2 आदि, आज हम इस आर्टिकल में बात करेंगे ऐसे दो शब्दों की जिनको लेकर अक्सर काफी कंफ्यूजन रहता है। वो है CT value और CT score
CT value क्या है?
कोरोना वायरस के इंफेक्शन का पता लगाने के लिए RT-PCR टेस्ट ही सबसे विश्वसनीय तरीका माना जाता है। इसका फुल फॉर्म है reverse transcriptase- polymerase chain reaction हालांकि इसकी सटीकता भी 80-90% की रेंज में ही है, लेकिन ये अन्य प्रकार की जांचों से ज्यादा सटीक है क्योंकि इसके जरिये वायरस के जेनेटिक मटेरिअल यानी RNA को पकड़ा जाता है। कई RT-PCR के लिए सैम्पल नाक और गले के भीतरी भाग से एक swab के जरिये लिये जाते हैं। फिर सैम्पल को वायरल ट्रांसपोर्ट मीडियम (VTM) में स्टोर कर लिया जाता है, जिससे सैम्पल लम्बे समय तक खराब नहीं होता। लैब में इस सैम्पल से RNA को अलग किया जाता है, फिर इस RNA से Reverse Transcriptase एंजाइम की मदद से DNA तैयार किया जाता है। फिर इस DNA के कुछ विशेष हिस्सों (जीन) की एक ऑटोमैटिक रिएक्शन मशीन में Polymerase chain reaction के जरिये बहुत सी कॉपी बनाई जाती हैं ये जीन मुख्यतः ORF1ab और N gene होते हैं जो कोरोना वायरस की पहचान होते हैं, सरल शब्दों में कहें तो कोरोना का ID कार्ड यही 2 जीन हैं। अगर सैम्पल में कोरोना वायरस है तो ये दोनों जीन भी होंगे और अगर ये दोनों जीन हैं तो PCR में उनकी कॉपी भी बनेगी। PCR की प्रक्रिया बहुत से छोटे छोटे हिस्सों में होती है जिन्हें सायकल कहा जाता है, एक साइकल मतलब एक बार कॉपी बनाई गई। PCR मशीन इन साईकल को गिनती है और जिस साईकल में कोरोना वायरस के जीन की इतनी कॉपी बन जाती है कि उसे मशीन पकड़ ले तो वो सायकल उस जीन के लिये ‘cycle threshold’ (CT) value हो जाती है। सैंपल में जितना ज्यादा वायरस होगा उसकी कॉपी उतनी ज्यादा बनेगी और उतनी कम सायकल मशीन में चलेंगी, और जितना कम वायरस होगा मशीन को उतनी ज्यादा सायकल चलानी पड़ेगीं। सरल भाषा में- “जितना ज्यादा वायरस उतनी कम CT value और जितना कम वायरस उतनी ज़्यादा CT वैल्यू”
अब इस CT value की जरूरत क्या है?
ICMR के अनुसार CT वैल्यू का आपके शरीर में इंफेक्शन से कुछ खास लेना देना नहीं होता ये बस एक समय पर सैम्पल में मौजूद वायरस की मात्रा को बताती है, ये बहुत हद तक सैम्पल किस तरह लिया गया उस पर निर्भर करती है। ज्यादा CT वैल्यू का अर्थ ये नहीं होता कि आपके शरीर में कम वायरस है। ये सिर्फ सैम्पल में वायरस की मौजूदगी पर आधारित है।
तो ये CT स्कोर क्या बला है?
कोरोना वायरस की दूसरी लहर में ये देखा गया है कि RT-PCR में नेगेटिव आने पर भी कई लोगों में कोरोना के लक्षण दिख रहे हैं, RT-PCR भी कई बार कोरोना वायरस के नए वैरियंट को पकड़ने में नाकाम हो रहा है। तो अब इंफेक्शन का पता लगाने के लिए डॉक्टर क्या करें? इस समस्या का समाधान है CT-Scan! अब अगर शरीर में वायरस है और वो RT-PCR से पकड़ में नहीं आ रहा है साथ ही मरीज को सभी लक्षण कोरोना के हैं, तो फेफड़ों को हुए नुकसान का पता लगाने के लिए डॉक्टर CT-Scan की सलाह देते हैं।
CT Scan क्या है?
इसका फुल फॉर्म है computed tomography scan ये हमारे शरीर को बिना चीरे फाड़े अंदर तक सब देख लेता है। इसमें XRay का इस्तेमाल होता है। ये मशीन शरीर की कई एंगल से बहुत सारी XRay तस्वीरें निकालती है, और कंप्यूटर की मदद से इन तस्वीरों को जोड़ कर एक बेहतर तस्वीर बनाती है। CT scan के जरिये बहुत छोटे इंफेक्शन को भी पकड़ा जा सकता है अगर हमारे फेफड़ों में कोई इंफेक्शन है तो वो CT स्कैन में बेहतर तरीके से दिखाई देगा CT स्कैन में इंफेक्शन के स्तर को नापने के लिए CT score का इस्तेमाल होता है इसकी दो स्केल होतीं हैं, कुछ लैब 1-25 की स्केल इस्तेमाल करती है वहीं कुछ 1-40 की। इन स्केल्स पर ज्यादा स्कोर का मतलब है खतरा। 1-25 की स्केल पर 20 से ऊपर खतरनाक माना जाता है वहीं 1-40 की स्केल पर 32 से ऊपर स्कोर खतरनाक माना जाता है। फेफड़े के अलग अलग हिस्सों में इंफेक्शन का स्तर अलग-अलग होता है इसलिए हर हिस्से का स्कोर भी अलग होता है।किसी भी रिपोर्ट में सिर्फ स्कोर देख कर डॉक्टर कोई फैसला नहीं लेते। इंफेक्शन के स्तर की गंभीरता का सही अंदाज़ा डॉक्टर CT स्कैन की फ़िल्म देखकर ही लगाते हैं।
इतना सब पढ़ने के बाद आपको CT value और CT score के बीच का अंतर पता है और आप अब पहले से ज्यादा ज्ञानी हैं। तो अपने ज्ञान का परिचय देते हुए ये आर्टिकल अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। बाहर निकलें तो डबल मास्क लगाए और मौका मिलते ही जल्दी से वैक्सीन ठुकवा लें।