वो जगह जहां जाकर बच्चे सबसे ज्यादा खुश होते हैं। क्या आपको आपका बचपन याद है? उस बचपन की बेशकीमती यादें जैसे आपका खिचड़ी स्कूल! एक पुराना सा छोटा कमरा! मीठी दवाई! या खेलने-कूदने और मजा करने वाली जगह! नहीं याद आया। क्या आपने आंगनवाड़ी का नाम नहीं सुना है, देखा आ गया ना झट से याद। हम आंगनवाड़ी की बात कर रहे हैं। कुछ ने जरूर अपने बचपन का कुछ समय अपने मोहल्ले या गांव की आंगनवाड़ी में बिताया होगा। है ना। सब सही है क्योंकि किसी भी आंगनवाड़ी केंद्र में प्रायः ये सब ही गतिविधियां होती हैं। लेकिन आंगनवाड़ी का उद्देश्य सिर्फ इतना ही नहीं है। काफी बड़ा है।
भारत में बढ़ती जनसंख्या व बच्चों में बढ़ते कुपोषण के लक्षणों के कारण भारत सरकार द्वारा ICDS योजना के अन्तर्गत आंगनवाड़ी केंद्रों को स्थापित करना शुरू किया था। जिसकी विधिवत शुरुआत 2 अक्टूबर 1975 में हुई थी। अगर मौजूदा समय की बात करें तो देश के सभी जिलों में आंगनवाड़ी स्थापित की जा चुकी हैं।
क्या आपने कभी सोचा है कि आंगनवाड़ी केंद्रों का बच्चों के स्वास्थ्य में कितना बड़ा योगदान है?
हर महीने 3 साल से कम उम्र के बच्चों की स्वास्थ्य और पोषण की जांच करने के लिए वजन का नाप तोल किया जाता है और वृद्धि प्राप्त करने हेतु ग्रोथ चार्ट भी बनाए जाते हैं। आंगनवाड़ी केंद्रों में गांव के बच्चों को स्कूल एक्टिविटीज भी करवाई जाती है, जिसमें उन्हें दाखिला होने से पहले खेलकूद तथा उनका खाना-पीना शिक्षा संबंधी ज्ञान दिया जाता है।
इन केंद्रों की स्थापना ज्यादातर गांव में बस्तियों में की जाती ताकि बच्चे शिक्षा हासिल कर सके व खेल कर पूर्ण विकास कर सकें। सरकार द्वारा हर गांव के आंगनबाड़ी के लिए बजट पास किए जाते हैं ताकि समय-समय पर आहार तथा अन्य उपयोगी चीजों की आपूर्ति की जा सके। हम ये कह सकते हैं कि आंगनवाड़ी बच्चों के सामाजिक, शारीरिक व स्वास्थ्यिक विकास में काफी मददगार है।
आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों के स्तनपान, वजन, टीकाकरण, दवाइयां, चेकअप का सारा ध्यान भी रखा जाता है। और निश्चित अंतराल पर इन सबकी रिपोर्ट सरकार तक पहुंचाई जाती है। बच्चो के स्वास्थ्य विकास में आंगनवाड़ी की भूमिका को हम उसके निम्न उद्देश्यों से भी समझ सकते हैं–
- छह वर्ष से कम आयु के बच्चों की टीकाकरण करना।
- समस्त गर्भवती स्त्रियों के लिए प्रसव से पूर्व देखभाल की व्यवस्था और टीकाकरण करवाना।
- छह वर्ष से कम आयु के बच्चों को पोषण व गर्भवती और शिशुओं की देखभाल करने वाली स्त्रियों का भी पोषण करना।
- 15-45 वर्ष के आयु वर्ग की सभी महिलाओं के लिए पोषण और स्वास्थ्य और प्रारम्भिक शिक्षा की व्यवस्था करना।
- गर्भवती महिलाओं की प्रसवपूर्व देखभाल तथा शिशुओं की देखरेख करने वाली माताओं की देखभाल करना।
- नए जन्मे शिशुओं तथा 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों की देखभाल करना।
- कुपोषण अथवा बीमारी के गंभीर मामलों को अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों अथवा जिला अस्पतालों को भेजना।
- साथ ही 3-6 वर्ष की आयु के बच्चों को विद्यालयपूर्व शिक्षा प्रदान करना।
आंगनवाड़ी केंद्रों में काम करने वाली कार्यकर्ताओं को बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन फिर भी ये बच्चों के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखती हैं। समय के साथ योजनाओं में बदलाव आते रहते हैं, जिसके कारण आंगनवाड़ी में काम करने वाली कार्यकर्ताओं को महिला और बच्चों की स्वास्थ्य शिक्षा संबंधित सेवाओं के अलग-अलग अन्य छोटे-बड़े कार्य भी करने पड़ते हैं।
केंद्र पर होने वाली गतिविधियों के अलावा इन्होंने पंचायत, ग्राम सभा, व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर होने वाले कार्यक्रमों में भाग लेना पड़ता है। कार्य अत्यधिक होने पर भी सभी चुनौतियों का सामना करते हुए बच्चों के स्वास्थ्य हेतु हर कार्य में लगी रहती है। इसका अच्छा उदाहरण कोरोना के समय का ले सकते हैं। कोरोना के समय में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर छोटे बच्चों को दवाइयां पिलाई और घर-घर राशन वितरित किए।
हालांकि गाहे-बगाहे आंगनवाड़ी केंद्रों में भ्रष्टाचार के मामले भी सामने आते रहते हैं। बहुत बार सरकार द्वारा दी गई राशि बच्चों व महिलाओं को नहीं मिल पाती है। इसके अलावा निश्चित राशन की मात्रा से कम मात्रा वितरित करने के अलावा कुछ जगहों पर राशन के रूप में दिए जाने वाले आहार में मिलावट के मामले भी सामने आते रहते हैं। यह सब गतिविधियां इस योजना के मूल उद्देश्यों के साथ ना सिर्फ धोखा है बल्कि इन सबका बच्चों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है।
लेकिन हम कह सकते हैं कि आंगनवाड़ी केंद्रों की बच्चों के स्वास्थ्य में जन्म से पहले व जन्म के बाद ध्यान रखने में अहम भूमिका होती है। इसलिए आंगनबाड़ी केंद्रों का हर गांव में होना बेहद जरूरी है।
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