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वो इन्सान जिसने दुनिया में सबसे ज्यादा जानें बचाईं

courtesy: britannica encyclopedia

ढीठ बैक्टीरिया के बारे में बात करते हुए अलेक्जेंडर फ्लेमिंग का जिक्र आया था, हमने जाना था कि कैसे उन्होंने दुनिया की सबसे पहली एंटीबायोटिक ‘पेनिसिलिन’ की खोज की थी. इस खोज के लिए उन्हें मेडिसिन का नोबेल पुरुस्कार भी मिला था. वह article आप यहां पढ़ सकते हैं

उसी की निरन्तरता में आज हम फ्लेमिंग के बारे में बात करेंगे और जानेंगे कि कैसे फ्लेमिंग इस दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों की जान बचाने वाले इन्सान बने।

शुरुआत

6 अगस्त 1881 को स्कॉटलैंड के आयरशायर में डार्वेल के पास लोचफील्ड फार्म में जन्मे अलेक्जेंडर फ्लेमिंग किसान ह्यूग फ्लेमिंग और ग्रेस स्टर्लिंग मॉर्टन के चार बच्चों में से तीसरे थे। जब अलेक्जेंडर 7 साल के थे तब उनके पिता ह्यूग फ्लेमिंग की मौत हो गई. आगे का रास्ता कठिन तो था पर फ्लेमिंग के हौसले भी बुलंद थे।

पढाई-लिखाई

शुरूआती पढाई लिखाई के लिए फ्लेमिंग लाउडाउन मूर स्कूल और डार्वेल स्कूल गए, और लंदन जाने से पहले उन्हें किल्मरनॉक अकादमी से दो साल की स्कॉलरशिप मिली। लन्दन में उन्होंने रॉयल पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूशन से आगे की पढाई की शुरुआत की।

पढाई के बाद चार साल तक एक शिपिंग कार्यालय में काम करने के बाद, बीस साल के अलेक्जेंडर फ्लेमिंग को एक चाचा जॉन फ्लेमिंग से कुछ पैसे विरासत में मिले। उनके बड़े भाई, टॉम जो  पहले से ही एक डॉक्टर थे ने उनसे कहा कि ‘भिया डॉक्टर बन जाओ बहुत स्कोप है!’

साल था 1903 अलेक्जेंडर ने पैडिंगटन के सेंट मैरी हॉस्पिटल मेडिकल स्कूल में दाखिला ले लिया। उन्होंने 1906 में डिस्टिंक्शन के साथ स्कूल से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। अब अलेक्जेंडर हो गये थे ‘डॉक्टर अलेक्जेंडर  फ्लेमिंग’।

सेना की नौकरी और आगे की कहानी

जैसे आज हिंदुस्तान में ‘टेरीटोरियल आर्मी’ है जिसमे आप या मैं किसी और नौकरी या व्यवसाय में रहते हुए भी कुछ समय तक अपनी सेवाएँ दे सकते हैं। वैसी ही व्यवस्था इंग्लैण्ड में भी थी जिसे ‘वालंटियर फ़ोर्स’ कहते थे। फ्लेमिंग ने इसे ज्वाइन कर लिया।

उनकी शुरुआत सिपाही की रैंक से हुई। फ्लेमिंग मेडिकल स्कूल में राइफल क्लब के सदस्य थे। क्लब के कप्तान ने फ्लेमिंग को टीम में बनाए रखने की इच्छा रखते हुए सुझाव दिया कि वह सेंट मैरी के रिसर्च विभाग में शामिल हो जाएँ। सेंट मैरी कॉलेज में वे वैक्सीन थेरेपी और इम्यूनोलॉजी के विषय पर उस टाइम के जबरदस्त रिसर्चर सर अल्म्रोथ राइट के सहायक बैक्टीरियोलॉजिस्ट बने।

1908 में उन्होंने बैक्टीरियोलॉजी में स्वर्ण पदक के साथ बीएससी की डिग्री हासिल की, और 1914 तक सेंट मैरी में लेक्चरर हो गये। 1914 में ही उन्हें सेना में लेफ्टिनेंट रैंक पर कमीशन मिला और 1917 में कैप्टन के रैंक पर प्रमोशन भी।

फ्लेमिंग ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रॉयल आर्मी मेडिकल कोर में सेवा की। उन्होंने और उनके कई साथियों ने फ्रांस में पश्चिमी मोर्चे पर युद्ध के मैदान में काम किया। 1918 में वे सेंट मैरी अस्पताल वापस लौट आए, जहां उन्हें 1928 में लंदन विश्वविद्यालय के बैक्टीरियोलॉजी के प्रोफेसर के रूप में चुना गया।

पेनिसिलिन की वो खोज जिसने दुनिया बदल दी

साल था 1928 और महीना था सितम्बर। फ्लेमिंग छुट्टियों के मूड में थे, काम- वाम साइड में रख कर वो छुट्टियाँ मनाने निकल लिए। 28 तारीख को जब वो लौटे तो उन्होंने देखा- कि जिस प्लेट में उन्होंने S. aureus नाम का बैक्टेरिया उगाया था उसमें एक फंगस उग आया है जिसने बैक्टेरिया के बढ़ने को रोक दिया है।

उन्होंने उस फंगस को इकट्ठा किया और उसे दूसरे कल्चर प्लेट में उगाया। चार दिनों के बाद उन्होंने देखा कि प्लेटों में फंगस की बड़ी कॉलोनियां विकसित हो गई हैं। उन्होंने इस प्रयोग को S.aureus बैक्टेरिया के साथ बार बार दोहराया और हर बार फंगस ने बैक्टेरिया को बढ़ने से रोक दिया।

इसके बाद फ्लेमिंग ने और भी कई बैक्टेरिया जैसे- Staphylococcus, Streptococcus, और diphtheria bacillus (Corynebacterium diphtheriae) के साथ भी यही प्रयोग दोहराया। फंगस ने इनको भी निबटा दिया। अब तक फ्लेमिंग समझ चुके थे कि उनके हाथ कुछ जादुई चीज लग चुकी है।

फ्लेमिंग ने बहुत सारा फंगस उगाया और इसके रस (EXTRACT) को निकाल कर इसका नाम रखा ‘पेनिसिलिन’ जो था दुनिया का सबसे पहला एंटीबायोटिक।

इस बारे में फ्लेमिंग ने कहा था- “जब मैं 28 सितंबर, 1928 की सुबह उठा, तो निश्चित रूप से मैंने दुनिया की पहली एंटीबायोटिक की खोज करके सभी दवाओं में क्रांति लाने की योजना नहीं बनाई थी। लेकिन मुझे लगता है कि मैंने ठीक यही किया था।” कितने हम्बल थे हमारे डॉ. अलेक्जेंडर फ्लेमिंग!

पेनिसिलिन ने कैसे हिटलर को हराया?

पेनिसिलिन की खोज ने न केवल कई संक्रमणों को ठीक करने में मदद की, बल्कि इसने डॉक्टरों और सर्जनों को फील्ड पर सर्जरी जैसे उपचार करने की आज़ादी दी, जो घातक संक्रमण के जोखिम के कारण पहले संभव नहीं था।

World War-II के दौरान, इसने युद्ध में घायल हुए ब्रिटेन के हर सात सैनिकों में से लगभग एक की जान बचाई। 1942 में सीमित तौर पर इसका इस्तेमाल शुरू हो चुका था। पेनिसिलिन को पहली बार सैन्य उपयोग के लिए 1943 में टेस्ट किया गया, जिसमें यूटा के बुशनेल जनरल अस्पताल और न्यूयॉर्क के हॉलोरन जनरल अस्पताल में संक्रमण वाले सैनिकों पर ट्रायल किया गया। कुछ ही महीनों में डॉक्टर युद्ध क्षेत्रों में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर रहे थे।

एक तरफ जर्मनी के साथ वाले एक्सिस देशों की सेनाएं इन्फेक्शन से जूझ रही थीं, वहीं पेनिसिलिन के आने के बाद मित्र देशों की सेनाएं इन्फेक्शन से बेहतर तरीके से निबट पा रही थीं। पेनिसिलिन की इस खोज ने दूसरे विश्वयुद्ध को मित्र देशों के पक्ष में मोड़ने में एक जरुरी भूमिका निभाई।

फ्लेमिंग की इस खोज ने अब तक कितनी जानें बचाई?

1929 में फ्लेमिंग के अपने प्रयोगों को पब्लिश करने के दस साल बाद- पेनिसिलिन दुनिया में सबसे जरुरी जीवन रक्षक दवा बन गई, जिसने सिफलिस, गोनोरिया, TB, गैंग्रीन, निमोनिया, डिप्थीरिया और स्कार्लेट बुखार जैसी भयानक बीमारियों को फैलने से रोका। ऐसा अनुमान है कि 1942 में दवा के रूप में पहली बार उपयोग किए जाने के बाद से पेनिसिलिन ने कम से कम 200 मिलियन लोगों की जान बचाई है।

पेनिसिलिन की खोज ने ऐसी कई जानलेवा बीमारियों को खत्म कर दिया जिससे इन्सान इतिहास की शुरुआत से ही जूझ रहा था। इसके खोजकर्ता, अलेक्जेंडर फ्लेमिंग द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक एक इंटरनेशनल हीरो बन गये। उन्हें 1944 में नाइट की उपाधि दी गई थी और 1945 में उन्हें मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार मिला।

हालांकि, फ्लेमिंग एंटीबायोटिक के विकास में जुटे कई वैज्ञानिकों में से एक थे। उन्होंने खुद इस घटना को “फ्लेमिंग मिथ” कहा था, फ्लेमिंग ने यह स्वीकार किया कि वो उनसे पहले इस दिशा में काम करने वाले कई वैज्ञानिकों की सफलताओं के सिर्फ एक प्रतिनिधि थे जिन्होंने एंटीबायोटिक्स विकसित किए और दुनिया को एक बेहतर जगह बना दिया।

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