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प्रेमचन्द, मैथिलीशरण गुप्त और महात्मा गाँधी

Munshi Premchand Source: Facebook

झाँसी का चिरगांव और बनारस का लमही वैसे तो साधारण भारतीय गांवों जैसे है , पर इन दोनों गाँवों का भारतीय साहित्य को समृद्ध बनाने में ऐतिहासिक योगदान रहा, हिंदी के राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म चिरगांव में, और हिंदी के महानतम उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द का जन्म लमही में हुआ| बीते दिनों राष्ट्र ने इन दोनों महान साहित्यकारों को उनकी जयंती पर नमन किया|
मुंशी प्रेमचन्द और मैथिलीशरण गुप्त का हिंदी साहित्य के अतिरिक्त भारतीय राष्ट्रवाद के विचार, और स्वतंत्रता आन्दोलन के साथ एक गहरा रिश्ता रहा है| प्रेमचन्द भारतीय समाज में व्याप्त हर प्रकार की रूढ़िवादिता, अंधविश्वास और ढोंग के खिलाफ मुखरता से लिखते रहे| शासक वर्ग के स्वार्थ युक्त आदर्शवाद से भी उनका सदैव टकराव चलता रहा, वे भारतीय किसानों और खेतिहरों के लिए लिखने वाले पहले उपन्यासकार थे| अंग्रेजी सरकार के खिलाफ लिखने पर सन 1908 में उनका कहानी संग्रह जब्त कर लिया गया था और उन्हें सख्त चेतावनी दी गई, तब वे नवाब राय के नाम से अपनी रचनाएँ प्रकाशित कराते थे, इस घटना के बाद उन्होंने “प्रेमचन्द” नाम अपनाया| सरकारी शिक्षक की नौकरी में रहते हुए भी उनके सत्ता के खिलाफ आलोचनात्मक लेख आना बंद नहीं हुए| और अंततः 1921 में गाँधी जी के विचारों से प्रभावित हो कर उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ कर पूरी तरह लेखन को अपना लिया, एक तरफ उनके शुरूआती उपन्यासों के नायक जहाँ शोषक वर्ग के हृदय परिवर्तन का कारण बनते लगते थे, वहीँ उनके द्वारा बाद में लिखे गये उपन्यासों के नायक एक निरंतर शोषण के चक्र से जूझते दिखते थे जो मूलतः तत्कालीन समाज में व्याप्त हताशा और नैराश्य की प्रतिध्वनि बनकर पाठकों को झकझोरते थे, इन सब के बावजूद भी प्रेमचन्द किसी भी प्रकार के वर्ग संघर्ष और हिंसात्मक आन्दोलन के विरुद्ध थे, उनका प्रयास हमेशा सुधारात्मक ही रहा| 1934 में उन्होंने कहा “हिंसक सामाजिक क्रांति अंततः सभ्य विकल्पों की नाकामी को ही दर्शाती है”
जहाँ प्रेमचन्द भारत के सदियों से दबे कुचले और शोषित वर्ग की आवाज़ बन रहे थे वहीँ खड़ी बोली के कवि मैथिलिशरण गुप्त सदियों से दमित भारतीय आत्मगौरव को दोबारा जगाने का कार्य कर रहे थे| उनका काव्य देशप्रेम की भावना और भारतीय सभ्यता की महान उपलब्धियों को जनमानस तक पहुँचाने का साधन बन रहा था, जिसे वर्षों से चल रहे अंग्रेजी राज के दौरान भारतीय समाज भूल सा गया था| 1912 में उनका काव्य संग्रह “भारत भारती” प्रकाशित हुआ, जिसने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान युवाओं को प्रेरित करने में महती भूमिका निभाई| 1931 में वे गाँधी जी के संपर्क में आये और गाँधी जी द्वारा उन्हें “राष्ट्रकवि” की संज्ञा दी गयी| वर्ष 1941 के सत्याग्रह में भाग लेने के कारण अंग्रेजी सरकार द्वारा उन्हें जेल भेज दिया गया| गुप्त जी का काव्य राष्ट्रीयता और गांधीवाद से प्रेरित रहा है, इसमें भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता और राष्ट्रीय चेतना के विकास हेतु निरंतर प्रयास किया गया है| वे हर प्रकार के दमन, अनैतिकता और पराधीनता के विरुद्ध एक मुखर आवाज़ थे, उनकी रचनाओं में सिर्फ पुरातन संस्कृति का यशगान ही नहीं, बल्कि कुरीतियों और रुढियों पर तीखे प्रहार भी थे| “हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी आओ विचारें आज मिल कर,यह समस्याएं सभी” गुप्त जी ये पंक्तियाँ भारतीय समाज की कमियों और गलतियों के लिए आज भी एक आईने का काम करतीं हैं|
मुंशी प्रेमचन्द और मैथिलीशरण गुप्त जी भारतीय साहित्य की दो समानांतर और क्रन्तिकारी धाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जो भारतीय राष्ट्रीय चेतना और गांधीवाद के विचारों से जुडी हुई हैं, और जिनका अभूतपूर्व योगदान भारतीय जनमानस को एकात्मता और राष्ट्रीयता के सूत्र में बाँधने में रहा है|

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