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नए कृषि कानूनों में काला क्या है?

फ़ोटो इंटरनेट से

कृषि मंत्री ने किसान आन्दोलन के महीनों बाद बड़ी मासूमियत से कहा है कि उन्हें तो अब तक किसी ने यह नहीं बताया कि ‘नए कृषि कानूनों में काला क्या है?’ कृषि कानूनों के कालेपन को समझना है? इसे पढ़िए….

आवश्यक वस्तु संशोधन कानून

बड़ी कम्पनियों का फायदा , आम आदमी, छोटे दुकानदार और व्यापारियों का नुकसान महंगाई में वृद्धि

वस्तु अधिनियम में बदलाव कर के खाद्य-पदार्थों पर इस की पकड़ ढीली कर दी गई है। खाद्य-उद्योग या निर्यात आदि में लगी कम्पनियों पर तो यह कानून अब लागू ही नहीं होगा यानी अब कम्पनियों द्वारा जमाखोरी पर कोई पाबंदी नहीं होगी।

किसानों को तो इसका कोई फ़ायदा होगा नहीं क्योंकि किसान तो फ़सल को सीधे खेत से मंडी ले जाता है। फ़ायदा तो बड़ी कम्पनियों को ही होगा। नुकसान आम आदमी, छोटे दुकानदार और व्यापारी को होगा। महंगाई बढेगी।

कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार कानून

किसान मजदूरों में बदल जाएंगे, बेरोजगारी बढ़ेगी

करार खेती कानून की धारा 2 (डी), धारा 2 (जी) (ii), धारा 8 (ख) से साफ़ है कि अब कम्पनियाँ ख़ुद खेती कर सकेंगी। छोटे छोटे खेतों को मिला कर 50-100-500 एकड़ के खेत बना सकेंगी। पांच-दस साल में ज़मीन को चूस कर, उस को बंजर बना कर दूसरे गाँव-जिले में चले जायेंगी।

अब भारत की ज़रूरत को नज़रंदाज़ कर के अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार को ध्यान में रख कर फूलों की खेती होगी। जब कम्पनियाँ खेती करेंगी तो मशीनों का प्रयोग ज्यादा और इंसान का कम। कुछ किसान मज़दूर बनेंगे पर ज़्यादातर बेरोज़गार हो जायेंगे। अड़ोसी पड़ोसियों के 2-4 एकड़ ले कर गुज़ारा करने वाला बेरोज़गार हो जाएगा। शहर में बेरोज़गारों/छोटे दुकानदारों की लाइन और लम्बी हो जायेगी।

कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून

मंडियां बंद हो जाएंगी, भोजन महंगा होता जाएगा

एपीएमसी मंडी में ज्यादातर उपज तो व्यापारी ही खरीदता है न कि सरकार। पर अब मंडी बाइपास कानून के चलते छोटे आढ़ती या व्यापारी की जगह बड़ी बड़ी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियां आ जायेंगी।

नए कानून के चलते एपीएमसी/नियंत्रित मंडी का वही हाल हो जाएगा जो सरकारी स्कूलों और हस्पतालों का हुआ है। ये एकदम से बंद न होकर धीरे धीरे बंद होंगी और भोजन होगा महंगा जैसी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं महंगी हो गई हैं।

सरकार 23 फसलों के एमएसपी या न्यूनतम समर्थन यानी न्यूनतम जायज़ भाव की घोषणा करती है पर इस का किसान को क्या फायदा अगर उसे वो न्यूनतम जायज़ भाव मिलता नहीं? किसान यही तो कह रहे हैं कि जिसे सरकार खुद न्यूनतम जायज़ भाव मानती है, उस का मिलना भी सुनिश्चित करे।

नए कृषि कानूनों में इतना कालापन क्या इन को रद्द करने के लिए काफी नहीं है? सरकार जिन संशोधनों पर तैयार हुई है वो मुद्दे छोटे हैं, बुनियादी नीति में सरकार ने अब तक कोई परिवर्तन स्वीकार नहीं किया।

चंद रईसों का बंधक हो जाएगा देश

यह भी ध्यान रहे कि अगर खेती में कम्पनियाँ घुस गईं और सरकार ने अपना पल्ला किसान से झाड़ लिया, तो अर्थव्यवस्था का कोई क्षेत्र, कोई मज़दूर, कर्मचारी, छोटा दुकानदार, कारीगर सुरक्षित नहीं रहेगा। देश चंद रईसों का बंधक हो जाएगा।

(लेखक म. द. विश्वविद्यालय, रोहतक, हरियाणा के भूतपूर्व प्रोफ़ेसर हैं और कुदरती खेती अभियान से जुड़े हैं। आप उन्हें rajinderc@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं)

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