साधन संपन्नता के बावजूद शहरी बच्चे कुपोषण के ज्यादा शिकार, ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति तुलनात्मक रूप से बेहतर।

किसी भी देश के बच्चे देश का आनेवाला भविष्य है इसलिए बच्चों का स्वस्थ होना उतना ही आवश्यक है जितना कि “मछली के लिए जल”।  स्वस्थ बचपन का रास्ता सभी के लिए उतना आसान नहीं जितना की यह बोलने में आसान लगता है, क्योंकि साधन सम्पन्न लोग तो अपने बच्चों के लिए संभवतया वह सभी सुविधाएं जुटा लेते हैं, जो वह देना चाहते हैं। चाहे वह महंगी प्राइवेट स्कूल वाली स्कूली शिक्षा हो या खानपान की व्यवस्था। परंतु गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करने वाले लोगों के लिए अपने बच्चों को लिए ये तमाम सुविधाएं जुटाना मुश्किल हो जाता है।

तमाम आंकड़े मौजूद हैं जो यह बताते हैं की बच्चों की आदि ज्यादा आबादी की पोषक तत्वों से भरपूर आहार तक पहुँच नहीं है। जो कि हर बच्चे की बचपन में आधारभूत आवश्यकता है। पोषक तत्वों के बिना बच्चे का बचपन पिछड़ जाता है, जिसके कारण वह शारीरिक व मानसिक उन्नति नहीं कर पाता है। हालांकि जिनकी पहुँच है नतीजे अभी वहां ज्यादा खराब हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS5) साधन संपन्नता के बावजूद शहरी बच्चे कुपोषण के ज्यादा शिकार, ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति तुलनात्मक रूप से बेहतर।

हिमाचल प्रदेश में पांच साल से कम उम्र के 30 प्रतिशत से अधिक बच्चे अविकसित हैं और एक चौथाई से अधिक कम वजन के हैं, जो की गहरी चिंता का विषय है। पोषण के सभी तीन महत्वपूर्ण संकेतकों – स्टंटिंटंग, वेस्टिंग, कम वजन के मामले में राज्य में बच्चों का स्वास्थ्य का परिदृश्य चिंताजनक है।  

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5)

हिमाचल में लगभग 11,000 घरों में किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि पांच साल से कम उम्र के 30.8 फीसदी बच्चे उम्र के हिसाब से कद के मामले में अविकसित हैं, यानी डब्ल्यूएचओ के अनुसार उनकी उम्र की तुलना में उनकी ऊंचाई कम है।

इस में सबसे ज्यादा प्रभावित जिला चंबा है, जहां 42.6 फीसदी बच्चे अविकसित हैं।  इसके बाद बिलासपुर 40 फीसदी और कुल्लू 36 फीसदी का नंबर आता है। सब हैं से कम प्रभावित जिलों में ऊना पहले नंबर पर है, हालांकि वहां भी 25 प्रतिशत बच्चे अविकसित मिले हैं।

विकसित बच्चों का अनुपात शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है। NFHS-4 की तुलना में इस बार 4.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो की एक सकारात्मक पहलू है।  

इसके अलावा, राज्य में कुल 25.5 फीसदी बच्चे कम वजन के हैं, 17.4 फीसदी बच्चे कमजोर हैं, जिनमें 7 फीसदी बच्चे गंभीर रूप से कमजोर हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में 6 से 23 महीने की उम्र के केवल 19 फीसदी बच्चों को ही पर्याप्त आहार मिल रहा है। सर्वेक्षण के अनुसार राज्य के शहरी क्षेत्रों में स्थिति अधिक चिंताजनक है, जहां केवल 14.4 प्रतिशत बच्चों को ही पर्याप्त/ पौष्टिक आहार मिल रहा है।

इस स्थिति में सुधार के लिए केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर काम करने की जरूरत है। इसके लिए ICDS और आंगनवाड़ी केंद्रों को मजबूत बनाए जाने की जरूरत है। समग्र स्वास्थ्य योजनाओं को लागू करना, स्वास्थ्य के ढांचे को भी मजबूत करना होगा। स्वास्थ्य साक्षरता भी एक अन्य जरूरी कदम है, जो कि लोगों में स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता पैदा करने के साथ-साथ उनकी स्वास्थ्य संबंधी फैसले लेने में भी मदद करेगा।

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सिमरन चौहान

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