यो हरियाणा सै परधान, जय जवान और जय किसान की धरती

जब भी देश में खेती-किसानी की बात होती है तब हरियाणा का नाम सबसे पहले लिया जाता है, आखिर क्यों? आइए जानते हैं इसके पीछे का कारण। दोस्तों आपने हरियाणा की उपलब्धियों के बारे में तो सुन ही रखा होगा। यहां के मेहनती और मजबूत लोगों के लिए कोई भी चुनौती बड़ी नहीं है। आपने सोशल मीडिया पर प्रचलित एक वाक्य भी सुना होगा-यो हरियाणा सै परधान, जय जवान और जय किसान की धरती। क्योंकि जय जवान और जय किसान का नारा सही मायनों में यहां चरितार्थ होता दिखता है।

पहले बात करते हैं यहां की कृषि के बारे में- खेती के मामले में हरियाणा अन्य राज्यों को मात दे रहा है। हरियाणा में लगभग 70% से अधिक आबादी खेती व इससे आधारित व्यवसाय से जुड़ी हुई  है। यहां के किसान साल में तीन तरह की फसलों को उगाकर अपना जीवन निर्वाह करते हैं।

यही फसले यहां के लोगों की आय का मुख्य स्रोत है। यहां के किसानों को बेहद मेहनती माना जाता है  इसलिए यहाँ कृषि के अंतर्गत फल, सब्जी, विविध तरह  के अनाज, पशु तथा मत्स्य पालन भी किया जाता है।

समय परिवर्तन के साथ-साथ किसानों ने नई-नई तकनीकों व मशीनों का प्रयोग करना शुरू कर दिया। यहां ग्रामीण आबादी के जीवन-निर्वाह का एकमात्र साधन कृषि ही है। कृषि के क्षेत्र में हरियाणा ने बड़े-बड़े राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। यहां की किसानी राज्य के क्षेत्रफल में छोटे होने के बावजूद अन्य राज्यों को मात दे रही है।

लगातार सरकार द्वारा हरियाणा में कृषि पर फोकस कर के नए-नए रोडमैप तैयार किए जा रहे हैं। राज्य सरकार ने कृषि और किसानों को आगे बढ़ाने के लिए कई योजनाएं भी लागू किए हैं।

तो आइए आज इस लेख के माध्यम से पता करते हैं कि आखिर हरियाणा में कृषि प्रदर्शन के मामले में सभी राज्यों में नम्बर एक होने के पीछे क्या कारण है? यहां की कृषि व कृषि पद्धति के बारे में पता करते हैं? और किसानी के हाल के बारे में।

हरियाणा में कृषि

हरियाणा में किसान एक साल में तीन प्रकार की फसलें उगाते हैं। यहां की खेती खाद्य आपूर्ति व बिक्री दोनों की के लिए ही की जाती हैं। यहां पर छोटे व बड़े दोनों प्रकार के किसान मौजूद हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी किसानों की संख्या बढ़ती रहती है जिससे यहां पर फसल की पद्धति में भी निरंतर बदलाव होते रहते हैं।

यहां पर की जाने वाली तीन प्रकार की फसलों में रबी की फसल, जायद और अंत में खरीफ की फसल शामिल है। रबी की फसल में गेहूं, सरसों, जौं व मक्का जैसी फसलें शामिल हैं जो नवंबर और दिसंबर में उगाई जाती हैं और मार्च में अप्रैल में काट दी जाती हैं।

फिर जायद की फसलें आती हैं। इन फसलों में ककड़ी, फल, खीरा, तोरी व सलाद जैसी फसलों को शामिल किया जाता है। यह फसलें अप्रैल व जुलाई में उगाकर काट दी जाती हैं।

अंत में आती है खरीफ की फसलें जैसे- ज्वार, गन्ना, धान, कपास। यह फसलें जुलाई में उगाई जाती हैं और अक्टूबर में काट दी जाती हैं। इन फसलों को बारिश के मौसम में उगाया जाता है। सभी प्रकार के किसानों द्वारा अलग-अलग प्रकार की खेती की जाती है।

राज्य सरकार का दावा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं, धान, जौ, बाजरा,  मूंगफली, सरसों, मक्का, उड़द दाल, चना, अरहर, कपास, और सूरजमुखी सहित 14 फसलों की खरीद करने वाला हरियाणा देश का एकमात्र राज्य है।

यहां पर छोटे किसान बड़े किसानों के खेतों में भी काम करते हैं। अधिकतर बड़े किसानों द्वारा अपनी जमीन को एक फसल के लिए हर साल अन्य किसान को मोल में जमीन दे दी जाती है ।

कृषि में उपयोग की जाने वाली पद्धति

हरियाणा में प्राचीन समय में कृषि हेतु प्राकृतिक पद्धति का उपयोग किया जाता था। लेकिन जैसे-जैसे वैज्ञानिक तकनीकों का आविष्कार  हुआ तो कृषि में मशीनों का इस्तेमाल होने लगा। हालांकि अधिकतर किसान स्वयं खेती करते हैं। पहले खेती करने के लिए हरियाणा के किसान जुताई व बुवाई हेतु बैलों का उपयोग करते थे, लेकिन आज के समय में इनकी जगह ट्रैक्टर व मशीनों ने ले ली है।

सिंचाई हेतु पहले कुओं व नहरों का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन आज के समय में जमीन में ही पंप लगवाने  लगे हैं। पहले प्राकृतिक रूप से खेती की जाती थी लेकिन आज के समय में खेती करने हेतु विभिन्न प्रकार के रसायनों व कीटनासिक दवाईयों का उपयोग किया जाता है।

नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन के सर्वे के मुताबिक हरियाणा में किसान की आय में वृद्धि देखने को लगातार मिल रही है। इस आय में  बढ़ोतरी मुख्य कारण युवा पीढ़ी की तकनीकी विकास व किसान की योजना है। पिछले 4 सालों में यहां के किसानों ने 102436 करोड़ के गेहूं और चावल की बिक्री की।

खेती करते समय आ रही समस्याएं

हमने यह तो देख लिया कि यहां पर 70 परसेंट से अधिक आबादी खेती व खेती से संबंधित व्यवसाय से जुड़ी हुई है लेकिन क्या आपको पता है की हरियाणा में किसानों को खेती करते समय बहुत से संकटों का भी सामना करना पड़ता है।

यहां पर खेती प्रौद्योगिकी में निरंतर हो रहे विकास पर तो सभी लोगों का ध्यान जा रहा है लेकिन इनके पीछे छिपी समस्याओं की ओर ध्यान किसी का नहीं जा रहा। हरियाणा में छोटे व बड़े दोनों प्रकार के किसान मौजूद है।

सबसे पहली समस्या यहां पर अधिकतर क्षेत्रों में जलभराव का संकट हमेशा मंडराता रहता है। अभी भी अधिकतर क्षेत्रों में सरकार के प्रयासों के बावजूद भी पानी की समस्या का समाधान नहीं हो पाया है, जिसके कारण अधिकतर किसानों की फसलें खराब हो जाती है।

हालांकि की सरकार द्वारा मुआवजा दिया जाता है लेकिन फसल खराब किसानों की जीवन निर्वाह पर बेहद असर पड़ता है। ऐसे में किसान की पूरी मेहनत पर पानी फिर जाता है।

दूसरी समस्या, लगभग आधी आबादी द्वारा अत्यधिक बिक्री हेतु रासायनिक खादों का उपयोग किया जाने लगा है, जिसके कारण खाद्य सामग्री में भी रसायन आ रहे हैं जो बीमारियों का मुख्य कारण बन रहे हैं। सरकार द्वारा दिये गए खेती से संबंधित उपकरणों, दवाइयों आदि का इस्तेमाल करने से किसान डरते हैं कि कहीं फसल खराब ना हो जाए। इसलिए गेंहू व धान केवल यही फसलें उगाने पर किसान जोर दे रहे हैं ताकि समय पर उनको अपने खाद्य हेतु फसल मिल सके।

कृषि हेतु सरकार द्वारा किए गए प्रयास

हरियाणा में लगातार कृषि में विकास को देखते हुए सरकार ने भी बहुत सारे प्रयास किए और किए जा रहे हैं। सरकार द्वारा कृषि विकास हेतु बहुत सारे रोडमैप तैयार किए जा रहे हैं। जलभराव संकट हर राज्य में है, लेकिन हरियाणा ने इसे लेकर अभियान योजनाएं बनाई। कृषि योग्य जमीन बेहद कम होने के कारण खराब जमीन को कृषि योग्य बनाने का अभियान शुरू कर दिया गया है। सरकार द्वारा यहां के किसानों को कम दामों पर दवाइयों व खाद की आपूर्ति की जा रही है।

अंत में हम कह सकते हैं कि हरियाणा क्षेत्रफल में अन्य राज्यों के मुकाबले कम होने के कारण फिर भी कृषि के क्षेत्र में आगे है। अन्य राज्यों को खेती किसानी हरियाणा से सीखनी चाहिए। हरियाणा में अलग-अलग तरह की फसलें एक ही साल में अलग-अलग तरीकों से उगाने के कारण निरंतर उन्नति कर रहा है।

यही वजह है कि जब भी देश में खेती -किसानी की बात होती तब हरियाणा का नाम जरूर लिया जाता है। इसमें चाहे किसानों से खरीद का मामला हो या फिर यहां की फसलों की गुणवत्ता। और इसीलिए यहां पर यह नारा बेहद प्रसिद्ध है जय जवान, जय किसान।

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