आजकल क्यों युवा अपने परिजनों व दोस्तों के बीच रहकर भी अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। किसी भी देश के भविष्य की दिशा उस देश के युवाओं पर निर्भर करती है। युवाकाल में बच्चे वयस्कता में कदम रखते हैं। इस उम्र में वे भरपूर जोश से भरे होते हैं। वे सीखने और नई चीजों की खोज करने में हमेशा तत्पर रहते हैं। अपने दैनिक जीवन में लोगों से मिलना जुलना, पार्टी करना समय बिताना उनकी फितरत में होता है। लेकिन अगर कोई इंसान अकेला रहता हो, किसी से नहीं बोलना, ना ही किसी को पसंद करता हो, तो यह एक बहुत बड़ी परेशानी है।
आज के समय में युवाओं में अकेलापन होना आम बात है। हर युवा अकेलेपन जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है। यूके के ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स (ONS) द्वारा किए गए शोध में पाया गया कि 16 से 24 साल के बच्चे किसी भी अन्य आयु वर्ग की तुलना में अधिक बार अकेलापन महसूस करते हैं। उन में से 10% ने कहा कि वे ‘हमेशा या अक्सर’ अकेलापन महसूस करते हैं।
क्या वाकई अकेलापन बेहद खतरनाक है? आइए हम जानने की कोशिश करते हैं कि अकेलापन क्या है? युवाओं में इसके ज्यादा मौजूद होने के क्या कारण है? और कैसे इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है?
अकेलापन क्या है?
अकेलापन मनुष्य के अंदर की भावना है जिसमें वह भीड़ में भी अपने आप को अकेला समझता है। अकेलापन इंसान को कभी भी, किसी भी समय महसूस होने लग जाता है। जब मन में किसी भी एक प्रकार की भावनाएं अधिक बढ़ जाएं और अन्य चीजों में उसकी रुचि खत्म होने लग जाए तो वह अकेलापन कहलाता है।
अकेला और अकेलेपन में बेहद अंतर होता है। अकेला जब इंसान एक होता है, जबकि अकेलापन भीड़ में खड़े इंसान को भी अकेला महसूस करवाता है। इसमें वह जल्दी ही खालीपन और एकांत का अनुभव करने लगता है। कभी कभार इंसान अपने दोस्त व परिवार जनों के बीच में भी अकेलापन महसूस करता है।
युवाओ में अकेलापन होने का कारण
16 से 24 वर्ष की आयु के युवाओं में सबसे ज्यादा अकेलापन देखा जा सकता है। इस उम्र में युवा अपनी समस्याओं को परिवारजनो के डर के कारण किसी के भी साथ साझा नहीं कर पाते हैं और अकेला रहना पसंद करते हैं।
वैसे तो सभी को अकेलापन कभी ना कभी महसूस होता है लेकिन जब यह लंबी अवधि तक रहता है तो उस इंसान के मानसिक व स्वास्थ्य क्रियाओं के लिए बेहद विनाशकारी होता है। आज के समय में ज्यादातर युवा अपना समय बाहरी दुनिया में लोगों से मिलने-जुलने बातें करने के बजाय फोन पर बिताना पसंद करते हैं। जिससे बाहरी सामाजिक परिवेश से वह कोई नाता नहीं रख पाते। सिर्फ अकेला रहना पसंद करते हैं।
युवाओं में अकेलापन महसूस होने के कारण
जब हमारा अपना कोई दोस्त ना हो, या फिर कोई हमारा दोस्त हमें अपने साथ ना रखना चाहे, हमें अपने अपने कामों के लिए किसी से कोई मदद मन मिले, या दफ्तर आदि में अकेले लंच करना पड़े इत्यादि स्थितियों में हमें अकेलापन महसूस होता है।
दूसरा कारण, किसी से लड़ाई झगड़ा हो जाना, धोखा मिलना, संबंधों का टूट जाना या रिश्तों में कड़वाहट पैदा होना इत्यादि कारणों की वजह से भी युवाओं के दिमाग पर अधिक असर पड़ता है, जिससे वह दुखी हो जाते हैं और अपने मन की बात किसी के साथ साझा नहीं कर पाते। धीरे-धीरे समाज व अपने आसपास के लोगों से नफरत करने लग जाते हैं और अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं।
युवाओं पर अकेलेपन के प्रभाव
अकेलापन एक प्रकार का मानसिक रोग है, जिस पर अगर समय रहते ध्यान ना दिया जाए तो इसके बहुत बुरे प्रभाव पड़ते हैं। युवाओं पर तो अकेलेपन का बेहद प्रभाव पड़ता है। जब किसी भी युवा को उसे जुड़े संबंधों से धोखा मिलता है या फिर भरोसा टूट जाता है तो वह सवयं को अकेला समझता है। ऐसे इंसान पढ़ने लिखने की उम्र में दुखी रहने लग जाते हैं।
ऐसा लगता है मानो आप अकेले हो और कोई भी आपका नहीं है। और आप ऐसे ही रहोगे। अकेलेपन से ग्रसित इंसान स्वयं को टूटा हुआ और अवसाद से घिरा हुआ समझते हैं। उनको लगता है कि कोई उनको पसंद नहीं करता। अकेलेपन के शिकार युवा मानसिक व शारीरिक रूप से बेहद कमजोर हो जातें हैं। ऐसी स्थिति में वह निराशाओं से इतना घिर जाते हैं कि इनसे छुटकारा पाने के लिए वर्जित दिशाओं की तरफ रुख मोड़ लेते हैं।
किसी के समझाने का उन पर कोई असर नहीं पड़ता। वे सिगरेट, शराब या किसी दूसरे नशे का सहारा लेकर अपने अकेलेपन से छुटकारा पाने का प्रयास भी करते हैं। बहुत से युवा ऐसी स्थिति में आत्महत्या जैसा कदम तक उठा लेते हैं।
अकेलेपन का सामना कैसे करें
देखा जाए तो बड़े ही दुख की बात है कि जिन युवाओं पर देश का भविष्य टिका हुआ है वही युवा मानसिक रोगों जैसे रोगों से ग्रसित होते जा रहे हैं। जिनमें से एक प्रमुख समस्या आज के समय में अकेलापन बन रहा है। इसलिए समय रहते अपनी इस समस्या का समाधान कर लेना चाहिए वरना यह एक विनाशकारी रूप भी ले सकता है।
आपकी जिंदगी जितनी आप सोचते हो उससे भी मुश्किल और अकेलेपन से भरी हो सकती है। इसलिए हर युवा को किसी भी समस्या पर दुखी होने की बजाय उस समस्या पर स्वयं सोच विचार कर आत्म विश्लेषण करना चाहिए या किसी ओर से शेयर करनी चाहिए ताकि उस समस्या का उचित समाधान निकाला जा सके।
दूसरा, ऐसे युवाओं को अपने मन की बातें लिखनी चाहिए, हमेशा सकारात्मक विचार रखने चाहिए व पुस्तकें पढ़ने में और परिवारजनों के साथ बैठकर समय बिताना चाहिए। इसके अलावा रोज कुछ नया नया सीखने का प्रयत्न करें। मेडिटेशन करें और लोगों के साथ मिलनसार बनकर भी अकेलेपन का सामना किया जा सकता है।
हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि अकेला होना आम बात है लेकिन अकेलापन एक बेहद गंभीर समस्या है। अगर यह समस्या ज्यादा हो जाती है तो डॉक्टर से उचित परामर्श लेना चाहिए।
आप अकेले नहीं है! यह सोचते हुए अपने अकेलेपन के लबादे से बाहर निकलिए और देखिए दुनिया कितनी खूबसूरत है। निरंतर चलती दुनिया की रफ्तार से ताल मिलाइए, नए दोस्त बनाइए और स्वयं को खुशियों और गमों में ढालना सीखें। याद रखें अकेलापन अपने अंदर का बुना हुआ जाल है जिसे हम स्वयं ही काटकर दूर कर सकते हैं।
- IIT Delhi’s Rural Technologies Going Intercontinental
- मेडिकल डेटा प्लेटफॉर्म विकसित करने के लिए नई साझेदारी
- 188 Districts Of The Nation Saw Inadequate Rainfall: IMD