आपने जरूर कभी ना कभी निगाहें फिल्म का एक गाना सुना होगा…
सावन के झूलों ने मुझको बुलाया, मैं परदेसी घर वापस आया
याद बड़ी एक मीठी आयी, उड़ के जरा सी मिट्टी आयी
नाम मेरे एक चिट्ठी आयी, जिसने मेरे दिल को धड़काया, मैं परदेसी घर वापस आया
आप ये पूरा गाना यहां सुन सकते हैं. . .
आप को लग रहा होगा कि हम आज सावन के झूलों का जिक्र क्यूँ कर रहे हैं। तो ऐसा है सावन का महीना चल रहा है और अभी-अभी तीज का त्यौहार गुजरा है। इसलिए हमने सोचा कि क्यूँ ना इस मौके पर तीज के बारे थोड़ी बात की जाए।
हमारे देश में हर त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, इसलिए भारत को त्योहारों के देश के रूप में भी जाना जाता है। हर त्यौहार की अपनी एक अलग महता होती है, जिनमें से सावन महीने में मनाए जाने वाला प्रमुख त्यौहार है तीज। इस त्यौहार का हम सब हर साल बेसब्री से इंतजार करते हैं। इसे हम अपने रिश्तेदारों व पड़ोसियों के साथ हुए बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। कई दिनों पहले इस त्यौहार की तैयारी करना शुरू कर देते हैं। लेकिन क्या आपके मन में यह सवाल आया है कि आखिर यह त्यौहार क्यों मनाया जाता है? इसका क्या महत्व है? तो चलिए जानते हैं कि क्या वजह है इस त्यौहार को मनाने की?
यह त्यौहार बरसात के मौसम के दौरान आता है। अन्य त्योहारों की तरह इस त्यौहार को भी बड़ी संख्या में गांव व शहरों में मनाया जाता है। इस त्यौहार को कजरी तीज व हरतालिका तीज के नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोग इस त्यौहार को महिलाओं व बच्चों का त्यौहार भी कहते हैं। सावन में चारों तरफ हरियाली छा जाती है, इसलिए इसे हरियाली तीज के नाम से भी जाना जाता है। हरियाली तीज सावन में शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन मनाए जाने वाला प्रमुख त्यौहार है। यह हर साल जुलाई या अगस्त के महीने में पड़ता है। नाग पंचमी से 2 दिन पहले ही इस त्यौहार को मनाया जाता है।
तीज के इस त्यौहार को बिछड़े हुए प्रेमियों के मिलन का प्रतीक भी माना जाता है। उत्तर भारत में इसे बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है जैसे हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड आदि। इस त्यौहार में 7 से 10 दिन पहले ही झूले लगा दिए जाते हैं। बच्चों व बूढ़ों दवारा तरह-तरह के पकवानो का आनंद लिया जाता है। हर साल चंद्रमा के चक्र के आधार पर तीज की तिथि निश्चित की जाती है।
तीज का इतिहास
तीज का इतिहास बड़ा ही रोमांचक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए 108 वर्ष कठोर तपस्या की थी। भगवान शिव बैरागी थे उन्होंने पार्वती को समझाया कि वह महलों में रहने वाली राजकुमारी हैं और कैलाश पर सुख सुविधा पूर्वक जीवन नहीं व्यतीत कर पाएंगी। लेकिन पार्वती हर तप के लिए तैयार थी। ऐसी मान्यता है कि उनके कठोर तप से प्रसन्न होकर तीज के ही दिन शिवजी ने पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था, इसलिए यह त्योहार मनाया जाता है।
यह त्यौहार वृंदावन में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दूर-दूर से पर्यटक इसे देखने के लिए वृंदावन आते हैं। वहां यह त्योहार श्रावण से शुरू होकर जन्माष्टमी तक चलता है। सुनने में आता है कि इसी दिन कृष्ण जी राधा व गोपियों के साथ वृंदावन आते हैं और एक दूसरे को झूला झूलाते हैं। इस दिन वृंदावन में सोने के झूले बनाए जाते हैं। इस त्यौहार को मनाने की परंपरा लंबे समय से चलती आ रही है।
तीज का महत्व
तीज मनाने की सबके लिए अपनी एक अलग महता होती है। सुहागिन औरतें व्रत रखकर अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं और कुंवारी कन्या अच्छे वर की प्राप्ति हेतु। ऐसा माना जाता है कि इस तीज का व्रत करवा चौथ की तरह निर्जला ही होता है। यह त्योहार पति और पत्नी के बीच प्रेम, अटूट श्रद्धा, व विश्वास बनाए रखने के लिए भी मनाया जाता है। महिलाएं खासतौर पर इस त्यौहार को अपने दांपत्य जीवन को सुखमय बनाने और उत्तम संतान की प्राप्ति की कामना करती हैं।
तीज कैसे मनाई जाती है
तीज को मनाने के लिए 3 दिन पहले ही तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। वृक्षों पर झूले लगाए जाते हैं, जगह-जगह दुकानों पर अलग-अलग तरह के पकवान तैयार किए जाते हैं, मेले लगाए जाते हैं। चारों तरफ हरियाली का लुत्फ़ उठाया जाता है। हर तरफ तीज को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। औरतें सुबह जल्दी उठकर स्नान करके सोलह सिंगार करती हैं, पूरे दिन व्रत रखती हैं और अच्छे-अच्छे पकवान बनाकर तीज माता की पूजा करती हैं। वे अपने लंबे दाम्पत्य जीवन की भी कामना करती हैं। हरी चूड़ियां व हरे वस्त्र पहनकर महिलाएँ व्रत करती हैं।
परंपरा के अनुसार महिलाओं के पीहर से भाई के हाथ से सिंधारा भेजा जाता है जिसमें कपड़े, आभूषण, सिंगार का सामान, मेहंदी, घेवर इत्यादि होते हैं। सभी औरतें पूजा के बाद बागों में झूला डालकर झूला झूलती है और तीज के गीत गाती हैं। महिलाएँ व बच्चे झूला झूल कर इस त्यौहार का आनंद लेते हैं। बच्चों को इस त्यौहार का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है।
तीज पर पड़ती जा रही समय की मार
पहले के समय में तीज को सभी के द्वारा मिल-जुलकर मनाया जाता था। लेकिन समय के साथ-साथ इस त्योहार की महत्ता कम होती जा रही है। भागदौड़ भरे इस दौर में लोगों के पास समय ही नहीं है कि त्यौहार मना सके, जिसके कारण आज की युवा पीढी ऐसे त्योहारों की की उत्सवधर्मिता व आनंद से वंचित हैं। बदलते समय, जीवन मूल्यों व आधुनिकता के दबाव में तीज के इस त्यौहार की वास्तविक छटा कहीं गुम हो गई है।
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