अपनी उल्टी-सीधी हरकतों से बाज आए इंसान; नहीं तो वो दिन दूर नहीं, जब बहुत देर हो जाएगी। जगह-जगह कूड़े कचरे के अंबार, इंसान द्वारा इस धरती पर पैदा किये गए सबसे बड़े खतरों में से एक है। (Litter is one of the most pervasive and fastest-growing anthropogenic alterations of the World) कूड़े का ये खतरा बहुत तेज़ी से और लगातार बढ़ रहा है। अपनी सहूलियत और स्वार्थ को ही प्राथमिकता देने वाला जीव इंसान, अपनी हरकतों से उपजे खतरे को फ़िलहाल सिरीयसली ले नहीं रहा है। धरती से सभी तरह के संसाधन लेने के बाद जब धरती के प्रति जिम्मेदारी निभाने का समय आता है तो इंसान अपनी जिम्मेदारियों से कन्नी काट लेता है।
जमीन से लेकर समुद्र तक लगे कूड़े के ये अंबार हमें रोज चुनौती देते हैं। ये सिर्फ चुनौती नहीं बल्कि एक जानलेवा खतरा है। हमारे द्वारा फैलाया गया ये कचरा हमारे लिए ही नहीं तटीय और समुद्री प्राणियों के जीवन के लिए भी गंभीर खतरा बन गया है।
हमारी पूरी दुनिया में इस कचरे का एक साम्राज्य पैर जमाता जा रहा है, जिसका सेनापति है प्लास्टिक। WorldAtlas.com के अनुसार प्लास्टिक समुद्री तटों पर पाए जाने वाले कूड़े में अधिकतर प्लास्टिक ही होता है। International Coastal Cleanup (ICC) ने बताया है कि उनके द्वारा 2017 में की गई सैंपलिंग में समुद्र तटों पर मिलने वाले कचरे में अधिकतर सिगरेट के टुकड़े, food wrappers, plastic bottles, बोतलों के ढक्कन, प्लास्टिक बैग, straw, stirrers, व foam take-out containers शामिल थे।
2020 में समुद्री तटों की सफाई के लिए पूरी दुनिया में एक अभियान चलाया गया था। इस अभियान में 122 देशों में काम करने वाले volunteers को 80,66,072 कचरे के आइटम मिले थे जिनमें से 964,521 (11%) सिगरेट के टुकड़े थे।
अब ये हम सभी तो जानते हैं कि ये प्लास्टिक कचरा सब के लिए कितना बड़ा खतरा है। अब चाहे वो जमीन पर रहने वाले प्राणी हों या पानी में रहने वाले।
मछलियों व अन्य समुद्री जीवों से लेकर पीने के पानी तक में प्लास्टिक या माइक्रोप्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े पाए जाने लगे हैं। ये सब मिलकर एक जहरीली खाद्य श्रृंखला बनाते हैं, और जो अंततः हम मनुष्यों को प्रभावित करती है।
ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वी पर अनेक विविधताओं व विशेषताओं वाला एक ही महासागर है। बेशक नाम हमने अपनी-अपनी सहूलियत से अलग-अलग रख लिए हैं। धरती के घूमने की ताकत से लेकर, हवा, सूर्य आदि सब मिलकर इन महासागरों के पानी को गति प्रदान करते हैं। जिससे समुद्र के अंदर की तमाम चीजें जिसमें अब कचरा प्रमुख तौर पर शामिल हो गया है एक समुद्र से दूसरे समुद्र में जाती रहती हैं। इसलिए सिर्फ किसी एक समुद्र के तट को साफ करने से काम चलेगा नहीं। बल्कि पूरी दुनिया के समुद्री तटों को साफ करना पड़ेगा।
कुछ देशों में कूड़े की डम्पिंग सीधी समुद्र में ही का जाती है जिससे धातु, कांच, कागज, कपड़ा, जैविक कूड़ा समुद्र में भरता जा रहा है। 1972 में Oil Spill Prevention, Administration and Response (OSPAR) यानि कि समुद्रों में कूड़े की dumping रोकने के लिए (जिसमें तेल रिसाव भी शामिल है) एक convention हुई थी जिसे हम OSLO convention के नाम से जानते है। बाद में पेरिस कन्वेन्शन-1974 (Paris Convention of 1974) में इसे विस्तार देते हुए land-based sources of marine pollution and the offshore industry को भी इसमें शामिल कर लिया गया। इसके अनुसार
सतत विकास लक्ष्य 14 (Sustainable Development Goal-14) (SDG14) Sustainable Development के लिए महासागरों, समुद्रों और Marine Resources के संरक्षण और सतत उपयोग की बात करता है।
‘ओडिशा के समुद्री तटों पर कूड़े की मात्रा सबसे कम (0.31 ग्राम / एम 2) जबकि गोवा के तटों पर कूड़े की मात्रा (205.75 ग्राम / एम 2) में सबसे अधिक मिली। अंडमान और लक्षद्वीप के समुद्री तटों पर भी केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा और पश्चिम बंगाल की तुलना में कूड़े की मात्रा ज्यादा मिली। आंध्र प्रदेश और अंडमान में बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक कचरा जैसे सर्किट चिप्स, डायोड, कंप्यूटर और मोबाइल हार्डवेयर के पुर्जे, सीडी, बैटरी से चलने वाले खिलौनों के हिस्से, बटन सेल आदि काफी मात्रा में पाए गए।
पी. कलाधरन और अन्य, जर्नल ऑफ द मरीन बायोलॉजिकल एसोसिएशन ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक लेख के अनुसार
समुद्री तटीय क्षेत्रों के पास लैंडफिल बंद नहीं होने व लैंडफिल साइट्स के आसपास बफर ज़ोन नहीं होने के कारण भी साइट से कूड़ा आसानी से पहले समुद्र तट तक और बाद में समुद्र में चला जाता है।
कूड़े और कचरे की इस समस्या से पार पाने के लिए कोई एक समाधान नहीं है। इसे कोई जादू की छड़ी घुमाकर भी नहीं सुधारा जा सकता। इससे पार पाने का एक ही तरीका है इंसान अपने व्यवहार में परिवर्तन लाए। एक सर्व समावेशी अप्रोच अपनाए और एक सुसंगत दृष्टिकोण विकसित कर के सिर्फ अपने बारे में सोचने की बजाय पूरी प्रकृति के बारे में चिंता करे। या दूसरे शब्दों में यूं भी कहा जा सकता है कि इंसान अपनी उल्टी-सीधी हरकतों से बाज आए। नहीं तो वो दिन दूर नहीं, जब बहुत देर हो जाएगी। (नोट-इस लेख को इंडिया न्यूज वायर की खबर के आधार पर लिखा गया है)
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