हिमाचल प्रदेश सेब और फलों की खेती के लिए जाना जाता है। पिछले कुछ दशकों में हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती का लगातार विस्तार हुआ है और आज 1.7 लाख से अधिक परिवारों के लिए सेब आजीविका का साधन है। प्रदेश में 1,09,533 हेक्टेयर सेब के बाग फैले हैं। प्रदेश में फलों की खेती बाड़ी के कुल क्षेत्र में अकेले 49 प्रतिशत सेब के बागों वाले क्षेत्र हैं। सेब का रकबा 1950-51 के दौरान 40 हेक्टेयर होता था। 1960-61 में यह बढ़कर 3,025 हेक्टेयर हो गया। सेबों के बाग में इस तरह क्रमिक विस्तार होता गया और आज फलों के कुल क्षेत्र का करीब 49 प्रतिशत इलाका सेब के अंतर्गत है। सेब की खेती की वजह से लाखों लोगों को रोजगार मिला हुआ है और लोगों की जीवनशैली बहुत बेहतर हुई है।

लेकिन इस साल हिमाचल प्रदेश में सेब सीजन की शुरुआत के साथ ही बागवानों की समस्याएं बढ़ती हुई नजर आ रही हैं। GST रेट में हुए बदलावों की वजह से सेब की पैकिंग में इस्तेमाल होने वाली पेटी और ट्रे के दामों में बेतहाशा बढ़ोतरी हो गई है। केंद्र सरकार ने कार्टन पर पहले GST का स्लैब 6 से 12 फीसदी किया। इसके बाद इसे बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया गया। इससे सेब की पैकेजिंग सामग्री दोगुनी महंगी हो गई है।

बीते सीजन के मुकाबले सेब बागवानों को इस साल एक पेटी खरीदने के लिए 150 से 200 रुपये अतिरिक्त खर्चा करना पड़ रहा है। पहले कोरोना और फिर आर्थिक मंदी की मार झेल रहे किसानों के सामने एक और भयावह समस्या पैदा हो गई है। सेब की पैकिंग सामग्री महंगी होने की वजह से कई बागवान मंडियों में शराब की पेटी में सेब लाने के लिए मजबूर हो गए हैं।

बागवानों की समस्याओं को विपक्षी दल लगातार उठाकर सरकार से उनको राहत देने की मांग कर रहे हैं। हिमाचल आम आदमी पार्टी का आरोप है कि सरकार बागवानों की समस्याओं को लेकर गंभीर नजर नहीं है। साथ ही उन्होंने सरकार को जल्द सड़कों की हालत सुधारने और कार्टन के दाम का काम करने की मांग भी की। सेब पैकिंग सामग्री, कीटनाशकों और अन्य वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि के विरोध में कांग्रेस ने भी मंगलवार को ठियोग में विरोध-प्रदर्शन किया। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ठियोग बस अड्डे पर धरना-प्रदर्शन किया और इसके बाद रोष रैली की शक्ल में नारे लगाते हुए एसडीएम कार्यालय पहुंचे। कांग्रेस पदाधिकारियों ने एसडीएम के माध्यम से राज्यपाल को ज्ञापन भेजा।

“संयुक्त किसान मंच के बैनर तले किसानों व बागवानों के विभिन्न संगठनों के द्वारा प्रदेशव्यापी आंदोलन के तहत ब्लॉक, तहसील व उपमंडल स्तर पर प्रदर्शन किए जा रहे हैं। सरकार किसानों, बागवानों पर टैक्स थोप कर उत्पादन लागत बढ़ा रही है, जिसकी वजह से उनको इनके उत्पाद की उचित कीमत नही मिल रही है। सरकार तुरंत इस मसले का हल निकाले और पैकेजिंग सामग्री जिसमें कार्टन पर GST 12 प्रतिशत से 18 प्रतिशत वृद्धि तुरन्त वापिस ले, खाद, फफूंदीनाशक, कीटनाशक कार्टन, ट्रे व अन्य लागत वस्तुओं पर सब्सिडी दी जाए, कश्मीर की तर्ज पर मण्डी मध्यस्थता योजना(MIS) योजना लागू की जाए, A ग्रेड के सेब के 60 ₹, B ग्रेड के 44 ₹ और C ग्रेड के 24₹ किया जाए और HPMC व HIMFED में लिये गए सेब का भुगतान तुरन्त किया जाए। प्रदेश में APMC कानून को सख्ती से लागू करे।“

संयुक्त किसान मंच के प्रदेश सह संयोजक संजय चौहान

बागवानों का कहना है कि इससे पहले भी 11 जुलाई को किसानों और बागवानों की ओर से उपमंडल स्तर पर प्रदर्शन किए गए थे। सरकार को ज्ञापन भी भेजे गए लेकिन बागवानों की समस्याओं को अनदेखा किया जा रहा है।

“अगर हमारी मांगें नहीं मानी गई तो सूबे के किसानों और बागवानों को सचिवालय का घेराव करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। तीस जुलाई तक सरकार ने मांगों को नहीं माना तो पांच अगस्त को हजारों किसान शिमला पहुंच रहे हैं।“

संयुक्त किसान मंच के प्रदेश संयोजक हरीश चौहान और सह संयोजक संजय चौहान

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार किसानों और बागवानों के इस आंदोलन को इसलिए अनदेखा कर रही ताकि कुछ दिनों के बाद सेब सीजन में लोगों का ध्यान बंट जाएगा। सरकार की मंशा है कि सेब सीजन शुरू होने पर किसान और बागवान आंदोलन के लिए एकजुट नहीं हो पाएंगे। उन्होंने कहा कि सरकार जब तक उनकी पंद्रह सूत्रीय मांगों को नहीं मान लेती यह आंदोलन जारी रहेगा।

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सिमरन चौहान

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