हरियाणा की 20 हजार आशा वर्कर्स “आशा वर्कर्स यूनियन हरियाणा” के आह्वान पर न्यूनतम वेतन, सुरक्षा उपकरणों, प्रोत्साहन राशियों में कटौती, 2018 में जारी किए गए नोटिफिकेशन के सभी निर्णयों को लागू करवाने, कोरोना संक्रमित आशाओं का सही इलाज, उचित मुआवजा एवं जोखिम भत्ता देने की मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं।
महामारी से निपटने में आशाओं की भूमिका
सभी जानते हैं कि कोरोना महामारी में आशा वर्कर्स ने स्वास्थ्य विभाग की रीड की हड्डी की तरह से काम किया है। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है केवल बचाव ही इसका इलाज है। ऐसे में आशाओ ने संक्रमितों की पहचान करने, उनको कोरेंटिन करने, मोहर लगाने, घरों पर पर्चा चिपकाने, कोविड के सर्वे करने एवं अलग-अलग समय पर विभाग द्वारा जारी किए गए अनेक आदेशों की पालना करते हुए हाई रिस्क लोगों की पहचान की, वो गांव में, अपनी कॉलोनी मे केन्सर, डायबीटीज, हाई बीपी, के मरीज की गणना कर रही थी। आशाओं ने आयुष विभाग द्वारा दी जा रही दवाइयां जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने का काम किया है। कोरोना संक्रमित पाए गए लोगों तक दूध, सब्जी, फल इत्यादि पहुंचाने का काम भी किया है।
इस समय पर आशाओं पर ऑनलाइन काम करने का दबाव भी बनाया गया है, आशाओं से सर्वे करवाने के लिए एक स्पेशल आशा सर्वेक्षण ऐप बनाई गई, हेल्थी हरियाणा ऐप में भी आशाओं द्वारा काम किए जाने के आदेश जारी किए गए जबकि विभाग ने आशाओं को न तो फोन दिये, ना ही डाटा दिया और ना ही डिजिटली काम करने की कोई ट्रेनिंग दी। विभाग द्वारा आशाओ को जारी किये गये 2जी सिम को बन्द कर उनके स्थान पर नये 4जी सिम जारी कर दिये गये जबकी आशाओं को फोन नही दिये गये।
इसी समय पर हड़ताल क्यों?
तमाम तरह के काम करते हुए आशा वर्कर्स ने असामाजिक तत्वों द्वारा हमले का सामना किया। आमतौर पर सामाजिक रूप से कमजोर परिवारों से संबंध रखने वाली आशाओं ने जब सामाजिक रुप से दबंग परिवारों के घरों पर पर्चे चिपकाए, उन्हें आइसोलेट रहने की सलाह दी, उनकी ट्रैवल हिस्ट्री की जानकारी विभाग को दी तो उन्हें हमले का सामना करना पड़ा। बहुत सारी आशाओं के साथ मारपीट हुई, न केवल आशा बल्कि उनके परिवार के अन्य सदस्य भी इन झगड़ों और मार पिटाई में घायल हुए हैं। एक तरफ विभाग आशाओं को काम का ऑर्डर जारी कर रहा था दुसरी तरफ स्थानीय प्रशासन उनकी ड्यूटी मंडियों में स्क्रीनिंग के लिए, पुलिस पोस्ट पर पुलिस के साथ बाहर से आने वाले लोगों की पहचान करने के लिए लगा रहा था। यहां तक कि राशन कार्ड का सर्वे करने के लिए भी आशा वर्कर्स की ड्यूटी लगाई गई। आशाओं की समस्या यह थी कि वह कोविड का काम करें, पहले से विभाग द्वारा दिए गए 40 काम करें या फिर स्थानीय प्रशासन द्वारा लगाई जा रही डयूटियाँ करे। आशाओं को समय पर मास्क, सेनेटाईजर भी उप्लब्ध नही करवाये गया, आशाओ ने कोविड में डयूटि करते हुए 4000 जोखिम भत्ते की मांग की, इसके लिये यूनियन ने तीन बार सरकार को पत्र लिखा, इसके बावजूद जब मुख्यमंत्री ने कोविड मे काम कर रहे कर्मचारियों के लिए दोगुने वेतन की घोषणा की तो उसमे आशाओ को शामिल नही किया गया। आशाओं को कोविड की दी जा रही प्रोत्साहन राशियों से हरियाणा का शेयर काट दिया गया। इससे पहले भी रूटीन की आठ एक्टिविटीज की प्रोत्साहन राशियों पर हरियाणा सरकार द्वारा दिया जाने वाला 50% शेयर काट दिया गया। इसी समय पर 2जी सिम बन्द करके, बिना फोन के ही 4जी सिम जारी कर दिये गये।
कोरोना मे काम करती ओर असमाजिक तत्वों से हमले ओर विभाग से लगातार प्रताडना झेलती आशा इतने सारे हमलो से आक्रोश मे भर गई ओर महामारी के समय पर भी हड़ताल करने को मजबूर हो गई।
कैसे चला आंदोलन?
आशाओ की हड़ताल पूरे 20 दिन चली है, ईन 20 दिनो मे आशा लगातर सड़क पर रहकर अपनी समस्याओं के समाधान और मांगों को पूरा करने की जिद के साथ सडको पर डटी हुई है।
7अगस्त से आशा लगातर सडकों पर है ओर अपनी मांगो को लेकर धरने कर रही है। हरियाणा मे अलग अलग पीएचसी, सीएचसी, जिला अस्पताल मे कुल 78 जगह धरने लगाये, बार-बार बातचीत के माध्यम से समस्याओ के समाधान की मांग की। जब 14 दिन तक सरकार ने आशाओ की कोई सुध नहीं ली तो 21 अगस्त को अंबाला, पंचकूला, यमुना नगर कैथल, कुरुक्षेत्र की सभी आशाओ ने स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज निवास स्थान पर प्रदर्शन करते हुए पहुंची पर आशाओ से बात करके मांगो का स्माधान करने की मांग की। 21 अगस्त को ही हरियाणा के बाकी जिलों में भी मन्त्रियों ओर विधायकों को ज्ञापन सोपें है। स्वास्थ्य मंत्री ने आंदोलनकारी आशाओं से कोई बातचीत नहीं की जब आशाओं का प्रदर्शन स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के निवास स्थान पर पहुंचा तो वह वहां से अपनी गाड़ी लेकर निकल लिए स्वास्थ्य मंत्री एवं सरकार की बात ना करने की इस जिद के खिलाफ वहीं से से 26 अगस्त को विधनसभा कूच का आह्वान किया गया।
26 अगस्त को पंचकूला के यमनीका पार्क में अंबाला पंचकूला, करनाल, यमुनानगर की आशाएं एकत्रित हुई एवं विधानसभा के लिए प्रदर्शन किया गया। इस बीच आशाओं ने लगातार सरकार से आशा वर्कर्स यूनियन के राज्य के प्रतिनिधि मंडल से बातचीत करके समस्याओं के निपटारे की मांग की सरकार का रुख बिल्कुल भी बातचीत का नहीं था ऐसी स्थिति में वहां पर उपस्थित थे तमाम आशा ने निर्णय लिया कि वह रात भर यही पंचकूला की सड़कों पर डटी रहेंगी और बाकी आशाओं को भी सुबह पंचकूला आने का आह्वान किया गया। इस बीच पुलिस द्वारा आंदोलनकारी आशाओं को डराने धमकाने के प्रयास किए गए। नेताओं को गिरफ्तार करने की धमकी दी गई पुलिस की एवं हरियाणा रोडवेज की बसें गिरफ्तारियों के लिए लगा दी गई। तमाम नेताओं एवं आशाओं ने कहा कि हम जेल जाने से नहीं डरते हैं। हम यहां से नहीं जाएंगे सरकार चाहे तो हमें यहां से जबरदस्ती उठाकर जेल में डाल सकती है, हम अपने आप बसों में नहीं बैठेंगे। सरकार हमें जेल में डालें या बात करें यह सरकार की इच्छा है हम दोनों के लिए तैयार हैं। इसके बाद मुख्यमंत्री के ओएसडी कृष्ण बेदी ने आशा वर्कर्स यूनियन के राज्य प्रतिनिधि मंडल से बात की उन्होंने विस्तार से मांग पत्र पर चर्चा करते हुए यूनियन के शीर्ष नेतृत्व को आश्वासन दिया कि अभी मुख्यमंत्री कोरोना पॉजिटिव है उनके कोरोना नेगेटिव होते ही प्रतिनिधिमंडल से बातचीत की जाएगी एवं आशाओं की तमाम समस्याओं का समाधान किया जाएगा उसके लिए उन्होंने 10 दिन का समय मांगा है। मुख्यमंत्री के ओएसडी के आश्वासन के बाद पंचकूला से वापसी का आह्वान किया गया एवं वहां पर उपस्थित यूनियन के नेतृत्व ने निर्णय लिया कि हम सरकार को 15 दिन का समय देते हैं इस बीच हम अपनी हड़ताल को स्थगित रखेंगे परंतु आंदोलन जारी रखेंगे।
सरकार का रुख
कोरोना योद्धाओं के लिए सरकार ताली ताली बजवा रही थी सेना द्वारा फूल बरसाए जा रहे थे लेकिन जब वह अपनी सुरक्षा की मांग कर रहे थे अपने लिए न्यूनतम वेतन और जोखिम भत्ते की बात कर रहे थे तो सरकार ने उनकी बातों को अनदेखा किया है नजरअंदाज किया है सरकार का यह रुख वास्तव में स्वास्थ्य कर्मियों के प्रति बेहद नकारात्मक है और किसी भी तरह से स्वीकार करने योग्य नहीं है। हरियाणा की आशा वर्कर्स यूनियन ने सरकार को 3 लेटर जारी किए जिनमें ₹4000 जोखिम भत्ते की मांग की गई। इसके बाद मुख्यमंत्री ने तमाम कर्मचारियों को जो कोरोना के अंदर ड्यूटी कर रहे हैं दोगुना वेतन देने का की घोषणा की इसमें आशाओं को शामिल नहीं किया जबकि आशा सीधी संक्रमण की जद मे थी और बेहद ईमानदारी से काम कर रही थी। आशाओं के साथ फील्ड में हुई मारपीट एवं प्रताड़ना की घटनाओं पर भी विभाग एवं सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाये गए। मिशन डायरेक्टर, स्वास्थ्य मंत्री, मुख्यमंत्री को बार-बार पत्र लिखकर सुरक्षा उपकरणों की मांग करनी पड़ी हमें सिंबॉलिक एक्शन भी करने पड़े इसके बावजूद भी गुणवत्ता पूर्ण सुरक्षा उपकरण नहीं उपलब्ध नहीं करवाये गये। इसका सीधा सा अर्थ है कि सरकार स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और कोरोना महामारी में अपनी बेहद महत्वपूर्ण सेवाएं दे रहे लोगों को कोरोना योद्धा तो बोल रही है लेकिन उनकी वास्तविक दुख तकलीफों से सरकार का कोई लेना-देना नहीं है सरकार की स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं एवं जनता को राहत पहुंचाने की कोई मंशा नहीं है। इस समय पर जब सार्वजनिक स्वास्थ्य के ढांचे को मजबूत किया जाना चाहिए था उस समय पर हरियाणा सरकार इसे कमजोर करने एवं स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की काम की स्थितियों को मुश्किल बनाने का काम कर रही है। सरकार का यह बेहद असंवेदनशील एवं अमानवीय रुख किसी भी तरह से बर्दाश्त करने लायक नहीं है। आंदोलन के दौरान दो बार अधिकारि स्तर की वार्ता हुई , जिनमे आशाओ की समस्याओं के समाधान के प्रयास की बजाय उनको डराने धमकाने के प्रयास किये गये।
जब आशा न्यूनतम वेतन ओर समाजिक सुरक्षा की बात करती है तो कहा जाता है की आशा तो एक स्वयं सेवी है परंतु आशाओ पर काम के ऑर्डर पक्के कर्मचरीयों से भी ज्यादा जारी किये जाते है।
हड़ताली आशाओ को वेतन कटौती की ओर एस्मा लगाने की धमकी दी गई है।
आशा सरकार से पूछ रही है की यदि हम कर्मचारी है तो हमे वेतन क्यों नही, ओर यदि कर्मचारी नही है तो फिर एस्मा कैसा? किस बात की धमकी?
आगामी योजना
अभी भी हरियाणा की तमाम आशा वर्कर हड़ताल स्थगित करके आंदोलन की राह पर डटी हुई है। अब इस अभियान को आम लोगों तक ले जाने की भी योजना बनाई जा रही है। यूनियन ने आम नागरिकों के नाम अपील जारी की है जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के ढांचे को मजबूत करने के लिए एक जन आंदोलन खड़ा करने की अपील की है एवं आशाओं के आंदोलन को भी समर्थन करने की अपील की है। यदि 15 दिन के अंदर सरकार हमारी समस्याओं के समाधान के प्रयास नही करती है तो आगे बड़े आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जायेगी।
लेखिका हरियाणा प्रदेश आशा यूनियन की सचिव हैं
डिस्क्लेमर/अस्वीकरण; इस आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के स्वयं के हैं.