भारतीय संविधान का पहला अनुच्छेद (आर्टिकल) कहता है “India, that is Bharat shall be a union of states” जिसका मतलब है कि “भारत राज्यों का एक संघ होगा” राज्य भारतीय संघ (फेडरेशन) की मूलभूत इकाइयां हैं। भारत में बहुत से स्तरों पर मौजूद विविधताओं, अंतर्विरोधों, और जटिलताओं के बाद भी यही संघीय ढांचा भारत की एकता और संप्रभुता को कायम रखता है। भारत में राज्यों और केंद्र के अधिकारों के बंटवारे के बारे में भारतीय की संविधान तीन अनुसूचियां हैं, राज्य सूची (स्टेट लिस्ट) इसमें 59 विषय हैं, समवर्ती सूची (कनकरेंट लिस्ट) में 52 विषय हैं,और संघीय सूची (यूनियन लिस्ट) में 98 विषय हैं। समवर्ती सूची के विषयों पर राज्य और केंद्र दोनों क़ानून बना सकते हैं, यदि राज्य और केंद्र के कानून में कोई विरोधाभास होगा तो केंद्र का कानून ही मान्य होगा।
अधिकारों के इस केंद्र की तरफ झुके हुए विभाजन से केन्द्रीय सरकार के पास असीमित संवैधानिक शक्तियां हैं, केन्द्रीय सरकार संविधान संशोधन के जरिये राज्य सूची के किसी भी विषय को केन्द्रीय या समवर्ती सूची में डाल सकती है। राज्यों की स्वायत्ता को हमेशा ही लोकतंत्र के लिए एक अच्छा संकेत माना जाता है, पर केंद्र में बैठी हुई सरकारें समय समय पर राज्यों के संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण करती रहती हैं। वर्तमान सरकार में अतिक्रमण की यह प्रवृति अधिक दिखाई देती है।
संसद द्वारा पारित 3 कृषि कानूनों के विरोध में जब देश भर के किसान दिल्ली की सीमाओं पर तमाम मुसीबतों के बाद भी डटे हुए हैं, तब इन तीन कृषि कानूनों की संवैधानिकता पर भी बहस चल रही है। इस संबंध में एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, जिसमें इन कानूनों की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है।
कृषि कानूनों के असंवैधानिक होने का आधार
कृषि राज्य सूची का विषय है।
संविधान के अनुसार कृषि राज्य सूची के अंतर्गत आने वाला विषय है, यह संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य सूची की प्रविष्टि (entry) 14 के अंतर्गत, और बाजार प्रविष्टि (entry) 28 के तहत आते हैं। जिसका अर्थ ये है कि राज्यों के पास इस विषय पर क़ानून बनाने के अधिकार हैं। अतः केंद्र सामान्य परिस्थितियों में कृषि संबंधी विषयों पर क़ानून नहीं बना सकता। फिर भी केंद्र यदि कृषि के विषय में कोई कानून बनाना चाहता है तो उसके पास निम्नलिखित संवैधानिक रास्ते हैं।
- केंद्र राज्यसभा में अनुच्छेद 249 के अंतर्गत एक ‘विशेष प्रस्ताव’ पारित कराए जो केंद्र सरकार को “राष्ट्रीय हितों” के लिए राज्य सूची के अंतर्गत आने वाले विषय पर क़ानून बनाने के लिए अधिकृत करता हो।
- केंद्र सरकार संविधान के अनुच्छेद 252 का प्रयोग करके 2 या 2 से अधिक राज्यों की विधानसभाओं द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।
वर्तमान स्थिति में पारित कृषि कानून इन दोनों में से किसी भी प्रावधान का पालन किये बिना ही पारित हुए हैं, और इन कानूनों को पारित करने के दौरान राज्यसभा के सभापति की भूमिका पर भी कई सांसदों ने सवाल उठाये हैं। इसके अलावा इन कानूनों में सरकारी मंडी के बाहर हो रहे व्यापार को टैक्स से छूट देने संबंधी प्रावधान हैं, जो राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता के अधिकारों में अतिक्रमण है। केंद्र द्वारा पारित कानूनों में किसान और कंपनी (कॉन्ट्रैक्टर) के बीच होने वाले विवादों के निपटारे के लिए भी प्रावधान किए हैं, जिसमें किसानों से कोर्ट में जाने का अधिकार छीन लिया है, वो SDM या ज्यादा से ज्यादा कलेक्टर तक ही अपनी शिकायत लेकर जा सकता है। ये प्रावधान राज्यों की प्रशासनिक व्यवस्था में केंद्र का सीधा हस्तक्षेप है। उपरोक्त संदर्भों के आधार पर ये कृषि कानून प्रथम दृष्टया असंवैधानिक और संघीय ढांचे के विपरीत दिखाई देते हैं, हालांकि इसपर अंतिम फैसला माननीय उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ को करना है।
केंद्र सरकार के तर्क
केंद्र सरकार इन कानूनों की संवैधानिकता का आधार समवर्ती सूची की 33वीं प्रविष्टि से ले रही है
समवर्ती सूची में प्रविष्टि 33 में निम्नलिखित विषय हैं
“निम्न के व्यापार और वाणिज्य में, और उत्पादन, आपूर्ति और वितरण,
-किसी भी उद्योग के उत्पाद जहां संघ द्वारा ऐसे उद्योग के नियंत्रण को संसद के द्वारा कानून द्वारा सार्वजनिक हित में समीचीन घोषित किया जाता है, और इस तरह के उत्पादों के समान वस्तु का आयात किया जाता है।
-खाद्य तिलहन और तेल सहित खाद्य पदार्थ
–पशु चारा, जिसमें ऑइल केक (खली) शामिल हैं
-कच्चा कपास, चाहे ओटाया हुआ हो या बिना ओटाया हुआ, और कपास का बीज
-कच्चा जूट”
इस प्रविष्टि का आधार लेने पर भी नए कृषि कानूनों के बहुत से प्रावधान असंवैधानिक प्रतीत होते हैं, 33वीं सूची का “सार्वजनिक हित” शब्द भी एक विवाद का कारण हो सकता है, प्रश्न यह है कि क्या इन कानूनों को पारित करने से पहले संसद ने उक्त विषयों को “सार्वजनिक हित” बताते हुए कोई क़ानून बनाया है?
Pith and Substance का सिद्धांत
जिन क़ानूनों की संवैधानिकता स्पष्ट नहीं होती है, इस सिद्धांत का मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है जब एक कानून को इस आधार पर चुनौती दी जाती है कि सरकार के एक स्तर (चाहे केंद्र हो या राज्य) ने सरकार के दूसरे स्तर के अनन्य क्षेत्राधिकार (exclusive right) का अतिक्रमण किया है। इसके अनुसार यदि सरकार के किसी स्तर के द्वारा बनाये गए कानून अपने क्रियान्वयन के स्तर पर उस क्षेत्र से संबंधित हैं जिसपर सरकार के उसी स्तर का अधिकार है जिसने वह कानून बनाया है, तो यह क़ानून वैध माने जाएंगे भले ही वे सीधे तौर सरकार के दूसरे स्तर के विशेष क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण करते हों।
कृषि कानूनों के संदर्भ में केंद्र सरकार के तर्क में इस सिद्धांत का भी बार बार उल्लेख किया जा रहा है उनके अनुसार यह कानून क्रियान्वयन के दौरान कृषि को नहीं बल्कि “व्यापार और वाणिज्य” को प्रभावित करेंगे जो समवर्ती सूची का विषय है अतः केंद्र द्वारा बनाये गए कानून मान्य होंगे।
एक क़ानूनी बहस के बाद इन कानूनों की संवैधानिक स्थिति तो सम्भवतः स्पष्ट हो जाए लेकिन वर्तमान केंद्र सरकार ने इन कानूनों को पारित कर आगामी सरकारों के लिए एक बहुत खराब उदाहरण पेश किया है इसके आधार पर आगे भी केंद्र सरकार संविधान में मौजूद अस्पष्टता का दुरुपयोग कर राज्यों के अधिकारों का हनन करती रहेंगी, जो कि हमारे लोकतंत्र और संविधान के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।
जब हम लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों के बारे में बात करते हैं तब हमें लोकभावना का भी ख्याल रखना चाहिए वर्तमान समय में जब लोकभावना इन कानूनों के खिलाफ है तो सरकार को अपनी हठधर्मिता छोड़कर कोई रास्ता खोजना चाहिए।
सन्दर्भ-
- https://www.constitutionofindia.net/constitution_of_india/the_union_and_its_territory/articles/Article%201
- https://www.constitutionofindia.net/constitution_of_india/460/articles/List%20I
- https://www.constitutionofindia.net/constitution_of_india/461/articles/List%20II
- https://www.constitutionofindia.net/constitution_of_india/462/articles/List%20III
- https://www.constitutionofindia.net/constitution_of_india/relations_between_the_union_and_the_states/articles/Article%20249
- https://www.constitutionofindia.net/constitution_of_india/relations_between_the_union_and_the_states/articles/Article%20252
- http://egazette.nic.in/WriteReadData/2020/222039.pdf
- https://www.prsindia.org/sites/default/files/bill_files/Farmers%20%28Empowerment%20and%20protection%29%20bill%2C%202020.pdf
- http://egazette.nic.in/WriteReadData/2020/222038.pdf
- https://www.google.com/url?sa=t&source=web&rct=j&url=http://14.139.60.114:8080/jspui/bitstream/123456789/12822/1/013_Working%2520the%2520Metaphor_The%2520Contrasting%2520use%2520of%2520Pith%2520and%2520Substances%2520in%2520Indian%2520and%2520Australian%2520Law%2520.pdf&ved=2ahUKEwjZ5dbG7onuAhVTyTgGHUw8ATkQFjACegQIERAB&usg=AOvVaw2Ud57V8dWLYiG0i7PRh4i8
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