हजरात…हजरात…हजरात!!!
हर एक आम ओ खास को बताया जाता है, कि आजकल बाजार में एक खास मुरब्बा आ गया है, जिसका नाम है ‘राष्ट्रवाद का मुरब्बा’ दरअसल ये मुरब्बा इतना असरदार है कि जो इसे एक बार चख ले उसकी जिंदगी से सभी दुख गायब हो जाते हैं, चलिये विस्तार से बताते हैं। है क्या कि 4-5 साल से देश पर बहुत खतरे हैं, जैसे 4 लफ़ंडर JNU में नारेबाजी कर दें तो देश खतरे में आ जाता है, कोई नत्थू खैरा वंदे मातरम न बोले तो देश खतरे में आ जाता है। कोई बीफ खा ले तो देश खतरे में आ जाता है। कोई अवार्ड लौट दे तो देश खतरे में आ जाता है। देश है क्या??
तो आपको बता दें ये वो देश है जिसकी आबादी 121 करोड़ है, जिसके पास सौ के करीब परमाणु हथियार हैं, दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना है, दुनिया के सबसे ज्यादा अर्ध सैनिक बल हैं, और ये देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन उपरोक्त सभी ताकतों के बावजूद देश खतरे में आ जाता है, देश के ऊपर खतरा सतत बना रहता है। खैर, देश का मुसलसल एक आभासी खतरे में रहना वक्त और सियासत की जरूरत है। ठीक उसी तरह जैसे हिटलर के समय जर्मनी खतरे में था!!
सियासी जरूरत इसलिए कि यदि आपने देश के बहुसंख्यकों को विश्वास दिला दिया कि उन्हें अल्पसंख्यको से खतरा है तो आप अपनी राजनैतिक जमीन पक्की समझिये। हमारे इतिहास में इसके उदाहरण प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं।
चलिये फिर से घूम कर राष्ट्रवाद के मुरब्बे पर आते हैं, ये राष्ट्रवाद है क्या? किताबी परिभाषा पर न जाते हुए आपको एक उदाहरण से समझाते हैं, फर्ज करिये कि आप एक घर में रहते हैं और आपके आस पड़ोस में कुछ और मकान हैं, लेकिन आपको अपना मकान ही सबसे अच्छा लगता है, क्योंकि उसमें ‛आप रहते हैं’ यही हिसाब राष्ट्रवाद का है, जिस देश में आप रहते हैं आपको वो अच्छा लगने लगता है। आप उसपर गर्व करने लगते हैं। उसकी बुराई या आलोचना सहन करने की स्थिति में नहीं होते हैं। ये सिर्फ एक इत्तेफाक है कि आपका जन्म एक देश में हुआ, फर्ज करिये आपका जन्म यदि पाकिस्तान में होता तो आप पाकिस्तान पर गर्व करते और यदि युगांडा में होता तो युगांडा पर गर्व करते। इसमें कुछ भी वैज्ञानिक नहीं है।
लेकिन ये तय करना जरूरी है कि ये गर्व मानवता पर हावी नहीं हो जाये। कहीं सिर्फ एक घटना, दुर्घटना के आधार पर आपका मानव होना ही खतरे में न पड़ जाए, रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था कि मैं ‛राष्ट्रवाद को मानवता से ऊपर नहीं रख सकता’ आज का राष्ट्रवाद एक विद्रूपित और दोगला राष्ट्रवाद है, जो कि खोखली धारणाओं पर आधारित है। मेरा विरोध राष्ट्रवाद से नहीं है, मुझे कहीं न कहीं ये जरूरी भी लगता है। मेरा डर बस इतना है कि ये आपके मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं पर हावी न हो जाये। आज के राष्ट्रवाद में असहमति का कोई स्थान नहीं है, आप को हर हाल में सहमत होना ही होगा, आज का राष्ट्रवाद सिर्फ मीडिया द्वारा गढ़ी गई एक कल्पना है जिसका देश की मूल समस्याओं से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। राष्ट्र शब्द का अर्थ तक न जानने वाले लोग आज इस राष्ट्रवाद के मॉडर्न मुरब्बे के सेल्समैन बने हुए हैं। जहां मुद्दे होने चाहिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, भ्र्ष्टाचार, सुरक्षा आदि। वहां हर समय सिर्फ एक मुद्दा खड़ा कर दिया जाता है, जो है राष्ट्रवाद! राष्ट्र तो जनता से होता है, जब जनता ही स्वस्थ्य नहीं है, जब जनता ही शिक्षित नहीं है, जब जनता ही सुखी और सुरक्षित नहीं है, जब जनता को उसके हक नहीं मिल रहे हैं, तब क्या सिर्फ राष्ट्रवाद का मुरब्बा भूखे पेटों को राहत पहुंचा सकता है? कुल जमा ये है कि आज का तथाकथित राष्ट्रवाद धर्मान्धता का एक नया चेहरा है, राष्ट्रवाद का मुरब्बा कुछ नहीं बस व्यक्तिवादी विचार के सडे हुए अचार की दोबारा पैकेजिंग मात्र है।