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दूर के ढोल

सुबह बालकनी में बैठ कर प्रेमचंद को पढ़ते समय जब कानों में ढोल तासों की आवाज पड़ी तो एक बार तो ध्यान हटाने की कोशिश की मगर पढ़ते पढ़ते ये भी सोचने लगा कि शादी ब्याह तो बन्द है क्योंकि महामारी चल रही है और दीवाली में अभी पूरे 36 दिन बाकी है।

मैं समझ गया कि ये दूर के ढोल हैं जो पास की गली में बज रहे है। थोड़ी ही देर में मेरी ही गली में आ आवाज आई तो मैने किताब पलट कर रख दी और बालकनी से झांका तो मैं क्या कर्कश नजारा देखता हूँ कि कुछ 30-40 लोग जिन्होंने अपने हाथ के पंजे में कमल का फूल पकड़ा हुआ है और सबसे आगे वो ढोल वाला।

मैंने सोचा कि ये ढोल वाला ही है जिसे वोट देने के बाद काम देखने के लिए 5 साल इंतज़ार नही करना पड़ता, इसे तो पहले नगदी दो नहीं तो कल दूसरी गली में किसी और के साथ, इस ख्याल के साथ ही मैं उठा, नीचे गया और घर का दरवाजा खोला तो सामने से आवाज आती है कि भाईसाहब इस बार ध्यान रखना, और ये कहते हुए उसने हाथ के पंजे में पकड़ा हुआ कमल मुझे दिखाया।

ये सुन कर मैं सोच में पड़ गया कि ऐसी कौन सी बात है जो मुझे इस बार याद रखनी है, वैसे ये पंक्तियां आपको हर 5 साल में 4-5 बार सुनने को मिल ही जाती है। मगर किसी में इतनी हिम्मत कहाँ की खुल के बता सकें कि याद क्या रखना है। तो मैंने उस व्यक्ति को रोका और नागरिक के मौन रहने की परंपरा को तोड़ते हुए उससे पूछा कि भाई याद क्या रखना है?

उसने मेरी ओर ऐसे मुस्कुरा कर देखा जैसे मैंने उसे मेरी ही जेब काटते हुए सरेआम पकड़ लिया हो। फिर वो अपनी झूठी हंसी छुपाते हुए बोला कि आप तो समझदार है समझ जाइये, और ये कहकर उसने मुझे एक पर्चा पकड़ाया और आगे चल दिया। मैंने पर्चा जेब मे रखा और बालकनी में वापस आया और नीचे देखा तो कुछ लोग यही चुटकुले लिखें हुए पर्चो को बाहर घर की दीवारों पर चिपका रहे थे।

पुराने कुछ फटें चीरे चुटकुलों पर फिर एक नया चुटकुला चिपका देना ये दर्शा रहा था कि अगर शर्म बेच दो तो हर काम कितना आसान हो जाता है। मैं वो चुटकुले पढ़ चुका था इसलिए मैंने वो पर्चा कूड़ेदान में डाला और फिर से प्रेमचंद को पढ़ने लगा।

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